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________________ 498 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य नवीनीकरण के रूप में कई प्रकाशन हुए हैं। कुछ प्रकाशित कृतियों पर हम लिख चुके हैं। यह संशोधनात्मक कृति है । इसका संशोधन श्री वीरशेखरसूरि एवं शाह जेठालाल भारमल ने किया है। यह संस्करण गुजराती लिपि में है। इसकी मूल रचना संस्कृत में हुई है। इस कृति में प्रतिष्ठा सम्बन्धी प्रायः उन्हीं विषयों का उल्लेख किया गया है जो अन्य प्रतिष्ठा ग्रन्थों एवं मूलकृति में निर्दिष्ट हैं तथापि प्रस्तुत कृति में कुछ नयी और कुछ उपयोगी सामग्री दी गई है सामान्यतया इसमें पाँच कल्याणक सम्बन्धी विधि, श्री लघुनंद्यावर्त्तपूजन विधि एवं श्रीदेवी पूजन विधि दी गई हैं। इसके साथ ही सहभेदीपूजा अर्थसहित दी गई है। महोपाध्याय यशोविजयजी विरचित चौबीसी दी गई है। पद्मविजयजी विरचित चैत्यवंदन - स्तुतियाँ दी गई हैं। इस संस्करण का मूल्य बढ़ाने के लिए निर्वाणकलिका से प्रतिष्ठाविधि सम्बन्धी ७७ श्लोक सछाया उद्धृत किये गये हैं अन्त में स्थापनाचार्य की बृहद्प्रतिष्ठा विधि दी गई है। 9. उक्त सामग्री के अतिरिक्त और जो कुछ इसमें आवश्यक विषय जोड़े गये प्रतीत होते हैं वे इस प्रकार अंजनशलाका-शान्तिस्नात्र - अष्टोत्तरी आदि पूजाएँ प्रारम्भ करने के पूर्व जो मन्त्राक्षर अनिवार्य रूप से बोले जाते हैं वे विधिपूर्वक दिये गये हैं; जैसे जल अभिमन्त्रित करने का मन्त्र, दांतण अभिमन्त्रणमन्त्र, मुखशुद्धिजल अभिमन्त्रणमन्त्र, मंत्रस्नान मन्त्र, मींढोल - मरडासींगी युक्त ग्रीवासूत्र नाडाछडी का अभिमन्त्रणमन्त्र, केसर अभिमन्त्रणमन्त्र, भूमिशुद्धि अभिमन्त्रणमन्त्र, पादपीठ का पूजा मन्त्र, दीपक प्रगटाने का मन्त्र, गुरु द्वारा दीपक पर वासचूर्ण प्रदान करने का मन्त्र, कलशस्थापना मन्त्र, और पुष्प - फल - नैवेद्य आदि प्रतिष्ठोपयोगी सामग्री को वासचूर्ण द्वारा अभिमन्त्रित करने का मन्त्र इत्यादि । २. अंजनशलाकाविधि अर्थात् प्रतिष्ठा विधि से सम्बन्धित ६८ बातें कही गई हैं। ये ६८ कथन विधिक्रम से दिये गये हैं । यहाँ ६८ विषयों से तात्पर्य-प्रतिष्ठा के समय करने योग्य आवश्यक कार्यों का सूचीक्रम है यथा १. नूतनजिनबिंबों, देव - देवीयों को भरवाने का आदेश देना २. पूर्वप्रतिष्ठित प्रतिमा को बाजते - गाजते हुए महोत्सवपूर्वक मंडप में स्थापित करना ३. सजोड़े वेदिकापूजन और क्षेत्रपालपूजन करना ४. शुभमुहूर्त में नूतन जिनबिंबों की वेदिका पर स्थापना करना ५. जलयात्रा के वरघोड़े में पाँच कुंभ लिये हुए पाँच बहिनों या कुमारिकाओं को साथ रखना ६. सजोड़े स्नात्रपूजा अष्टप्रकारी पूजा एवं कुंभस्थापना करनी इत्यादि ६८ बातें कही गई हैं । ३. निवार्णकलिका के कुछ मन्त्र उद्धृत किये गये हैं जैसे- १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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