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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/497 संक्षिप्त सूचन किया है। जबकि संशोधित प्रति में इसका सविस्तार स्पष्टीकरण किया गया है। उसके बाद समवसरणस्थापना, निर्वाणकल्याणक, विसर्जनादि की विधियाँ यथावत् रखी गई हैं। इसके साथ ही प्राचीन प्रतिष्ठा विधि, जिनबिंबपरिकर प्रतिष्ठा विधि, कलशारोपण विधि और ध्वजारोपण विधि मुद्रित प्रति के अनुसार ही उल्लिखित की गई हैं। प्रस्तुत संशोधित प्रति का परिशिष्ट भाग विधि-विधान सम्बन्धी उपयोगी सामग्री से युक्त है। ___ परिशिष्ट नं.१ में मूल विधानों में पूरक बनने वाली सभी विधियाँ दी गई हैं। परिशिष्ट नं.२ में नवग्रह-दशदिक्पाल-अष्टमंगल की स्थापना एवं रचनादि की विधियाँ कही गई है। परिशिष्ट नं.३ में मंडप एवं वेदिका का प्राचीन स्वरूप दिया गया है। परिशिष्ट नं.४ में विविध मुद्राओं का स्वरूप दिया गया है। परिशिष्ट नं. ५ में जलयात्राविधान में उपयोगी उपकरणों की सूचि दी गई है। परिशिष्ट नं.६ में अंजनशलाका विधि में उपयोगी उपकरणों के नाम वर्णित है। परिशिष्ट नं.७ में अठारह अभिषेक में आवश्यक औषधियों का सूचन किया गया है। परिशिष्ट नं.८ में ३६० कल्याणकों की सूची दी गई हैं। परिशिष्ट नं.६ में श्री शीलविजयगणि द्वारा हस्तप्रत के आधार पर लिखी गई विधि तथा रंगविजय जी ने वि.सं. १८७६ में भरुच नगर के सवाइचंद-सुखालचंद की शंखेश्वरपार्श्वनाथ की प्रतिमा भराकर अंजनशलाका करवाई थी उस समय दस दिन तक प्रतिष्ठा उत्सव का विधान, जिस विधि-नियम के साथ सम्पन्न हुआ, उसका स्पष्ट विवरण करने वाला श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ पंचकल्याणक गर्भित प्रतिष्ठाकल्प नामक १६ ढ़ाल का स्तवन दिया गया है। इस प्रकार उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि यह संशोधित' प्रति वर्तमान में प्रचलित प्रतिष्ठा विधि के आधार पर निर्मित की गई है अथवा वर्तमान परम्परा में प्रचलित प्रतिष्ठाविधि को दृष्टि में रखकर तैयार की गई है। अंजनशलाका (प्राण प्रतिष्ठा) प्रतिष्ठाकल्पविधिः । सकलचन्द्रगणिकृत प्रतिष्ठाकल्प का यह नवीन संस्करण है। यहाँ ध्यातव्य है कि सकलचन्द्रगणि रचित प्रतिष्ठाकल्प के संशोधन, सम्पादन और ' यह संशोधित प्रति श्री नेमचंद मिलापचंद्र झवेरी जैनवाडी उपाश्रय ट्रस्ट-गोपीपुरा, सूरत से प्रकाशित है। २ यह संस्करण श्री आदिनाथ मरुदेवा वीरामाता अमृत जैन पेढ़ी (ट्रस्ट) धारानगरी-नवागाम से प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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