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496 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
और दर्शनादि चार पदों की स्थापना करने के श्लोक मूल में नहीं है परन्तु आचारदिनकर में उल्लिखित होने से ये श्लोक बोल सकते हैं इसलिए परिशिष्ट १ में उक्त श्लोक दिये गये हैं।
पंचम दिन की विधि - इस दिन की विधि में श्री बीशस्थानक पूजन करते समय मूल में बताये गये मंत्रों के साथ-साथ बीशस्थानक पूजादि में वर्णित बीस पदों के बीस श्लोक बोलने हों और उन उन पदों का जाप करना हों तो उसकी विधि शान्तिस्नात्रादिविधिसमुच्चय के आधार पर परिशिष्ट नं. १ में कही गयी हैं ।
षष्टम् दिन की विधि - इस दिन की विधि में च्यवनकल्याणक प्रसंग के समय इन्द्र और इन्द्राणी को आभूषण पहनाते समय बोलने योग्य श्लोक और मंत्र परिशिष्ट में दिये गये हैं। प्रभु के माता-पिता बनने की विधि लोकव्यवहार से करवायी जाती है वह विधि भी परिशिष्ट नं. १ में दी गई है। देववंदन के समय च्यवनकल्याणक का चैत्यवंदन तथा स्तवन कितनी ही हस्तप्रतों में प्राप्त होता है वह भी परिशिष्ट नं. १ में दिया है।
सप्तम दिन की विधि - इस दिन की विधि में जन्मकल्याणक प्रसंग के समय मेरूपर्वत के ऊपर २५० अभिषेक विस्तार से करवाने हों तो उसका विधान भी परिशिष्ट नं. १ में दिया गया है।
अष्टम दिन की विधि - इस दिन अठारह अभिषेक करते समय - आठ अभिषेक के बाद तीन मुद्राओं के द्वारा जिनेश्वर परमात्मा का आहान मूल पाठ में संक्षेप से कहा गया है जबकि इस संस्करण में प्रस्तुत विधि का विस्तृत वर्णन हुआ है।
नामस्थापना के समय करने योग्य विशिष्ट विधि भी प्रतिष्ठाकल्प की कई प्रतों में उपलब्ध होती है वह परिशिष्ट नं. १ में दी गई है।
नवम् दिन की विधि - इस दिन राज्याभिषेक के अवसर पर राज्यतिलक करने की विधि कहीं-कहीं कुछ परम्पराओं में करवायी जाती है इसलिए राज्यतिलक का मंत्र टिप्पणी में और नवलोकांतिक देवों के नाम तथा उनकी विनंति परिशिष्ट नं.१ में दिया गया है।
दीक्षाकल्याणक प्रसंग के समय भाववृद्धि में कारणभूत कुलमहत्तरा का आशीर्वचन, अलंकार उत्तारण का श्लोक, सर्वविरतिसूत्र और देववंदन के समय बोला जाने वाला दीक्षाकल्याणक का चैत्यवंदन परिशिष्ट न. १ में दिया गया है। दशम् दिवस की विधि- दशवें दिन की पूर्वात्रि में केवलज्ञान कल्याणक के प्रसंग पर प्रतिष्ठा योग्य जिनबिंबों की अधिवासना एवं अंजन विधान किया जाता है। इस विधान में कहीं चूक न हों अतः मूलप्रति में इस विधि का
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