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488/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
निम्न हैं- १. मण्डपनिर्माण विधि २. वेदीरचना विधि ३. मंडप में प्रतिमा प्रवेश करवाने की विधि ४. देववंदन विधि ५. शुचिविद्यारोपण और सकलीकरण विधान ६. प्रतिमा पर वर्णन्यास करने की विधि ७. दिग्बंधन और स्नान विधि ८. नन्द्यावर्त्तमंडलालेखन विधि ६. नन्द्यावर्त्त पूजन विधि १०. अधिवासना विधि ११. जिन प्रतिमा में पृथ्वी आदि तत्त्व का न्यास, इन्द्रियादि का न्यास, नाडीदशक का न्यास, वायुदशक का न्यास करने की विधि १२. सहजगुण स्थापना विधि १३. जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि १४. नाम स्थापना विधि, १५. संक्षिप्त प्रतिष्ठा विधि १६. लेपमय प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि १७. सरस्वती आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा विधि। इन विधि-विधानों के अन्तर्गत मंडप-तोरण की ऊँचाई, वेदी निर्माण के द्रव्य, वेदी के चारों कोनों में रोपने योग्य खील, प्रतिष्ठापयोगी सामग्री, भूतबलिमंत्र, दिग्बंधनमंत्र, नन्द्यावर्त्तपूजनयंत्र, शान्तिबलिमंत्र, जल, पुष्प, धूप के मंत्र, लोकांतिक देवदिशाज्ञापकयंत्र, अधिवासनामंत्र इत्यादि का भी उल्लेख किया है। आठवाँ परिच्छेद- इस परिच्छेद में नव्यप्रतिष्ठापद्धति के अनुसार प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों एवं आवश्यक कृत्यों पर प्रकाश डाला गया है। यहाँ 'नव्यप्रतिष्ठापद्धति' से तात्पर्य है- वर्तमान में प्रचलित प्रतिष्ठा विधि। ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से प्रचलित प्रतिष्ठा विधि का क्रम इस प्रकार है - १. मुहूर्त निर्णय-राजपृच्छा-भूमिशोधन करना २. मंडप निर्माण करना ३. वेदी की रचना करना ४. संघभक्ति करने का आदेश देना ५. संघ आमंत्रण की पत्रिका भेजना ६. औषधी पीसने वाली स्त्रियाँ तैयार करना ७. अभिषेकादि क्रियाओं के लिए यथोक्त लक्षणयुक्त स्नात्रकार तैयार करना ८. अमारिघोषणा करना ६. व्यवस्थापक मंडल तैयार करना १०. प्रतिष्ठा के प्रथम दिन- जिनप्रतिमा को मंडप में विराजित करना, जलयात्रा विधान करना, कुंभस्थापना करना, अखंडदीपक की स्थापना करना, नवांग वेदी की रचना करना और जवारारोपण करना। दूसरे दिन नन्द्यावर्त्त का आलेखन करना और नन्द्यावर्त्त का पूजन करना। तीसरे दिन- दिक्पालों का पूजन, दिशाओं में बलि का प्रक्षेपण, नवग्रहों की पूजा
और अष्टमंगल की स्थापना करना। चौथे दिन- सिद्धचक्र का मंडल बनाना और उसका पूजन करना। पाँचवे दिन- बीशस्थानक का पूजन करना। छठे दिनइन्द्र-इन्द्राणी की स्थापना करना और च्यवन कल्याणक विधि करना। सातवें दिनजन्मकल्याणक की विधि करना, दिक्कुमारी कृतोत्सव विधि करना और इन्द्र-इन्द्राणीकृत जन्माभिषेकोत्सव करना। आठवें दिन- कृत्य विधि, जलादिमंत्रण विधि, जिनाहानादि की अवान्तर विधि, दिक्पालादि आहान विधि, मंत्रन्यासादि की अवान्तर विधि, पंचामृत द्वारा १०८ अभिषेक इत्यादि करना। नौंवे दिनअधिवासना की विधि करना दशवें दिन- अंजनशलाका कृत्य विधि करना,
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