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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/21 भारतीय संस्कृति की विभिन्न परम्पराओं में विधि-विधान ____ भारतीय दर्शन की प्रायः सभी परम्पराओं में विधि-विधानों का उल्लेख मिलता है। यह संभव है कि किसी परम्परा में अपने मौलिक विधि-विधान कम हों और किसी परम्परा में अधिक हों, किन्तु सभी के अपने-अपने विधि-विधान हैं। जैसे, जंगल में रहने वाले आदिवासियों की अपनी सामाजिक परम्परा होती है, उनके भी धार्मिक रीति-रिवाज होते हैं। यहूदी, मुस्लिम, खिस्ती, बौद्ध, सिक्ख आदि के अपने-अपने विधि-विधान है। यहूदियों में सुन्नत, करावकी, कोशर (धार्मिक रीति के अनुसार पवित्र माने जाने वाला बोराक) लेना, मस्तक पर टोपी पहनना, शक्रवार को सूर्यास्त के बाद किसी प्रकार का कार्य नहीं करना, हिब्रू भाषा बोलना, सीनेगोग में जाकर प्रार्थना करना, सन्ध्या काल के समय स्नानपूर्वक गृहांगन में दीपक प्रगटाना आदि कई धार्मिक नियम एवं विधान है। इस्लाम धर्म में भी सुन्नत का रिवाज है। स्त्रियों को काला बुरखा पहनना, पाँच समय नमाज पढ़ना, टोपी पहनना, हज की यात्रा करना, काबा की प्रदक्षिणा करना आदि धार्मिक नियमों एवं विधियों का पालन करना आवश्यक माना गया है। खिस्तियों में बालक को खिस्ती धर्म की दीक्षा दी जाती है। वे लोग चर्च में प्रार्थना करते हैं वहाँ ब्रेड एवं शराब का प्रसाद दिया जाता है। इसी प्रकार बपस्तिमा आदि उनके धार्मिक विधि-विधान है। पारसी धर्म में बालक को नौजोत अर्थात् पारसी धर्म की दीक्षा देते हैं और दीक्षा के समय चद्दर देते हैं। बौद्ध धर्म में सामनेर दीक्षा (जैन परम्परा की छह मासिक सामायिक के समान प्रतिज्ञा ग्रहण), उपसंपदा (बड़ी दीक्षा के समान प्रतिज्ञा स्वीकार), उपोसथ (पौषध), प्रवारणा (पाक्षिक प्रतिक्रमण की भाँति आलोचना की क्रिया) एवं प्रायश्चित्त आदि के विधि-विधान प्रचलित है। इनमें सामनेर दीक्षा ग्रहण करने वाला साधक दीक्षा की अवधि पूर्ण होने के बाद चाहे तो पुनः गृहस्थ जीवन में जा सकता है। हिन्दु धर्म में षोडश संस्कारों की परम्परा है। इसमें ब्राह्मण आदि उच्च वर्गों में जनेऊ धारण करना, विशेष अवसर पर यज्ञ, हवन करना-करवाना, वेदमन्त्रों का पाठ करना, सन्ध्या करना, नवग्रह की शान्ति हेतु शान्तिकर्म करना, पुष्टिकर्म करना, वृद्धावस्था में वानप्रस्थ या संन्यास ग्रहण करना इत्यादि कई प्रकार के विधि-विधान है। इनके अतिरिक्त मृतकादि के अवसर पर भिक्षुओं को दान देना, मन्दिर में मोमबत्ती या दीपक जलाना आदि विधान भी किये जाते हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से फलित होता है कि सभी परम्पराओं में किसी न किसी रूप में अपने-अपने विधि-विधान और धार्मिक रीति-रिवाज होते ही हैं। वस्तुतः किसी धर्म की उपासना पद्धति का मूल अंग विधि-विधान ही होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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