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________________ 476/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य में श्री सिद्धचक्र महापूजन के समय जो यंत्र रखा जाता है अथवा जिस यंत्र का आलेखन किया जाता है उसका मुख्य आधार 'सिरिसिरिवालकहा' है। प्रस्तुत कृति की प्रस्तावना में यंत्र का आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से बहुत सुन्दर वर्णन किया गया है। इस यंत्र में आलेखित मंत्राक्षरों, मंत्राक्षरों की मात्राएँ, वर्ण, स्वर, व्यंजन आदि का सोद्देश्य प्रतिपादन हुआ है। वस्तुतः श्री सिद्धचक्र बृहत्पूजन में क्रमशः निम्न विधि-विधान सम्पन्न किये जाते हैं- १. अतीत-वर्तमान एवं अनागत चौवीसी की पूजा २. यंत्र या मांडला के प्रथम वलय में नवपदों की पूजा ३. द्वितीय वलय में स्ववर्ग तथा अनाहत की पूजा ४. तृतीय वलय में अट्ठाईस लब्धिपदों की पूजा ५. चतुर्थ वलय में गुरु पादुका की पूजा ६. अधिष्ठायक देवों का आहान आदि ७. पंचम वलय में अधिष्ठायकादि देवों की पूजा ८. षष्ठ वलय में जयादि देवों की पूजा ६. सप्तम वलय में सोलह विद्यादेवियों की पूजा १०. अष्टम वलय में चौबीस यक्ष और चौबीस यक्षिणी की पूजा ११. नवम वलय में चतुर्धारपाल और चतुर्वीर की पूजा १२. दश-दिशाओं के दिक्पालों (देवों) की पूजा १३. नवग्रहों की पूजा १४. नवनिधि का पूजन १५. दुष्ट वित्रासन विधान १६. स्नात्र पूजा १७. अष्टप्रकारी पूजा १८.मंत्रध्यान और देववंदन विधि स्तोत्र अन्त में सिद्धचक्र और शांति का पाठ बोला जाता है। इस पूजन के विषय में कहा जाता है कि श्री सिद्धचक्र के यंत्रोद्धार का मूल विधान विद्याप्रवाद नामक दशवें पूर्व में था, जब पूर्वो का विच्छेद हुआ तब उसमें से यह विधान महापुरुषों द्वारा उद्धृत कर लिया गया। प्राचीन परम्परा से लेकर अब तक इस विधान का प्रचलन विशेष रूप से रहा हुआ है। तथा प्रतिष्ठादि शुभकार्यों के प्रसंग पर मंगलकारी कृत्य के रूप में यह पूजन अनिवार्यतः किया जाता है। सिद्धचक्रमण्डलविधान ___ यह एक संकलित कृति' है। इसके संकलनकर्ता आचार्य विमलसागरजी है। इसका सम्पादान डॉ. रमेशचन्द जैन ने किया है। यह रचना संस्कृत गद्य-पद्य की मिश्रित शैली में है। इसमें मन्त्रों का बाहुल्य है। यह कृति दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध है। दिगम्बराचार्यों ने गृहस्थ के लिए नित्यार्चन, चतुर्मख, कल्पद्रुम और अष्टाहिक आदि अनेक पूजाएँ कही हैं उनमें इन्द्रध्वज, महाशान्तिक, सिद्धचक्र, त्रैलोक्यविधान, तथा कोटि गुणों की पूजा करना अष्टाहिक पूजा कहलाती हैं। इन ' यह कृति सन् १९६० में, पार्श्वज्योति मंच, मड़ावरा (जि.) ललितपुर (उ.प्र.) से प्रकाशित हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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