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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 477 अष्टाहिक पूजा में सिद्धचक्र पूजा का भी स्थान है। वस्तुतः सिद्धचक्र एक अभूतपूर्व विधान है। यह विधान हमें आत्मगुणों की ओर प्रेरित करता है, क्योंकि इसमें परमशुद्ध सिद्धआत्मा के गुणों की पूजा की गई है। इस विधान को महासती मयणासुन्दरी ने विधि एवं उत्साहपूर्वक किया था उसके परिणाम स्वरूप जिनबिम्ब एवं सिद्धचक्रयन्त्र के निर्मल न्हवन ( स्नात्र ) का जल छिड़कने मात्र से श्रीपाल राजा कुष्ठ रोग से मुक्त हो गये थे। सिद्धचक्र आराधना की यह परम्परा अद्यपर्यन्त भी चली आ रही है। दिगम्बर परम्परानुसार यह विधान अष्टाह्निक पर्वादिकाल में आठ दिनों तक भक्ति भावपूर्वक किया जाता है । इस विधान के समय जो भी कृत्य या विधियाँ सम्पन्न की जाती हैं उनका नामोल्लेख इस प्रकार है सर्वप्रथम शुद्ध भूमि पर वेदिका का निर्माण करते हैं अथवा जिनालय के मण्डप के बाहर निर्मित वेदी पर आठ वलय वाला मण्डल बनाते हैं। उस मण्डल को सफेद चावलों एवं रंगीन चावलों से भरते हैं। उसके बाद आचार्य को निमन्त्रित करते हैं, विधानाचार्य निर्मित वेदी के सामने ध्वजारोहण का विधान करते हैं, फिर मण्डपवेदी की जगह पर सौभाग्यवती नारियों द्वारा हल्दी का लेप कराकर भूमि शुद्धि करते हैं। फिर मण्डप वेदी की प्रतिष्ठा की जाती है। उसके बाद पूजनादि सम्पूर्ण विधि को समुचित रूप से सम्पन्न करवाने के लिए योग्य व्यक्तियों की इन्द्र-इन्द्राणियों के रूप में प्रतिष्ठा (स्थापना) करते हैं। तदनन्तर आत्मरक्षा के लिए यजमानों (इन्द्र - इन्द्राणियों ) आदि का सकलीकरण करते हैं। करन्यास करते हैं और दिग्बंधन करते हैं। तत्पश्चात् मृत्तिका नयन विधान करते हैं इसमें अंकुरारोपण करने के लिए प्रतिष्ठा के नौ दिन पूर्व शुभ वेला में सुहागिन स्त्रियों द्वारा मिट्टी मंगवाते हैं। इसके अनन्तर सर्वाह्ययक्ष की पूजा, पंचकुमार का पूजन और क्षेत्रपाल का पूजन करते हैं। फिर दिक्पालों का आह्वान करते हैं। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा की निर्विघ्न समाप्ति हो तथा अनागत काल में देश, पुर, राजा, प्रजा, इन्द्र एवं यजमान को यथेष्ट लाभ हो एतदर्थ प्रतिष्ठा से नौ दिन पूर्व ही अंकुरारोपण के दिन जाप्यानुष्ठान की विधि प्रारम्भ करते हैं। इसके अनन्तर विनायक यन्त्र की पूजा करते हैं। फिर दिक्पाल आदि देवी-देवताओं का आह्वान करते हैं, देवी-देवताओं की उन-उन दिशाओं में विभिन्न रंगों की ध्वजाएँ स्थापित करते हैं, फिर क्रमशः वायुकुमार, मेघकुमार आदि का पूजन करते हैं, क्षेत्रपाल का पूजन करते हैं, सर्वाहव्यक्ष का पूजन करते हैं, नवग्रह का पूजन करते हैं, और शासन देवता का पूजन करते हैं। उसके बाद पंचामृत अभिषेक का प्रारंभ करते हुए आमन्त्रित सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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