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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/475 आहन किया जाता है पूजा करने कराने वाले भक्तिवंत श्रावकजन शरीरशुद्धि, हृदयशुद्धि और आत्मरक्षादि की विधियाँ करते हैं। तत्पश्चात् सिद्धचक्र मंडल पट्ट का हृदय में चिंतन करते हुए उसे स्वच्छ चौकी के ऊपर स्थापित करते हैं वह पट्ट नौ वलय से युक्त होता है। इन नौ वलयों का पूजन करना ही सिद्धचक्र पूजन है। प्रथम वलय में नवपद की अष्टप्रकारी पूजा की जाती है। द्वितीय वलय में सोलह अनाहतों का पूजन, तृतीय वलय में अट्ठाईस लब्धिपदों का पूजन, चतुर्थ वलय में गुरु पादुकाओं का पूजन पंचम वलय में अठारह प्रकार के अधिष्टायक देवों का पूजन, षष्टम वलय में जयादि देवों का पूजन, सप्तम वलय में सोलह विद्यादेवियों देवों का पूजन, अष्टम वलय में चौबीस यक्ष और चौबीस यक्षिणियों का पूजन, नवम वलय में चतुर्धारपाल और चतुर्वीर का पूजन किया जाता है। तदनन्तर दशदिक्पाल और नवग्रह का पूजन किया जाता है। उसके बाद क्षीर, दधि, घृत, इक्षुरस, गन्धोदक एवं शुद्धजल के द्वारा यन्त्र पट्ट का स्नात्र किया जाता है। पुनः यन्त्र पट्ट की अष्टप्रकारी पूजा की जाती है। यहाँ ध्यातव्य हैं कि इस कृति के प्रारम्भ में संस्कृत की मूलविधि दी गई है उसके बाद उस विधि में आने वाले श्लोकों, स्तोत्रों, मन्त्रोच्चारणों का गुजराती भाषा में विवेचन किया गया है। इस विधान का माहात्म्य अद्भुत है। यह प्राचीनतम विधान है। प्राचीनता की अपेक्षा से इस कृति का मूल्य स्वतः सिद्ध होता है। इसका संपादन सेठ जसभाई, लालभाई ने किया है। सिद्धचक्रयन्त्रोद्धारबृहत्पूजनविधि यह एक संकलित रचना है। मूलतः यह संस्कृत शैली में निबद्ध है। इसकी व्याख्या गुजराती में है। इस कृति में अपने नाम के अनुसार सिद्धचक्रमहापूजन की विधि उल्लिखित हुई है। इस विश्व में सर्व कार्य सिद्ध करने वाला और परम पवित्र शक्तिवाला तत्त्व सिद्धचक्र को माना गया है। इसकी आराधना के भिन्न-भिन्न प्रकार हैं। सामान्यतया आराधना के दो प्रकार होते हैं १. सामान्य और २. विशिष्ट। श्रीपालराजा और मयणासुन्दरी ने विशिष्ट आराधना की था फल को प्राप्त किया वही आराधना विशिष्ट है। श्री सिद्धचक्र की विशिष्ट आराधना में यन्त्र एवं उसके पूजन-विधान का अतिशय महत्त्व है। श्री सिद्धचक्र संबंधी प्राचीन और अर्वाचीन अनेक यंत्र उपलब्ध होते हैं किन्तु वर्तमान ' यह कृति श्री अमृत जैन साहित्यवर्धक सभा दौलतनगर, मुंबई ने वि.सं. २०२७ में प्रकाशित की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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