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________________ 468 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य प्रथम भाग- इस प्रथम भाग में आत्मारामजी विजयानन्दसूरि रचित पाँच पूजाएँ दी गई हैं उन पूजाओं के नाम ये है- १. स्नात्र पूजाविधि २. अष्टप्रकारी पूजाविधि ३. नवपद पूजाविधि ४. सत्रहभेदी पूजाविधि ५. बीशस्थानक पूजाविधि द्वितीय भाग- इस दूसरे भाग में मुनि हंसविजयजी कृत दो पूजाएँ संकलित हैं। वे निम्न हैं १. गिरनारमंडन श्री नेमिनाथ की १०८ प्रकारी पूजा २. समेतशिखरविंशति जिनपूजा तृतीय भाग- इस भाग में उन्नीस प्रकार की पूजाओं का संग्रह है वे विजयवल्लभसूरि द्वारा विरचित हैं। उनके नाम ये हैं- १. पंचपरमेष्ठी पूजाविधि २. पंचतीर्थी पूजाविधि ३. श्री आदिश्वर पंचकल्याणक पूजाविधि ४. श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजाविधि ५. पार्श्वनाथप्रभु पंचकल्याणक पूजाविधि ६. महावीर प्रभु पंचकल्याण पूजाविधि ७. अष्टापदतीर्थ पूजाविधि ८. नंदीश्वरद्वीपतीर्थ पूजाविधि ६. निन्यानवें प्रकारी पूजाविधि १०. एकबीसप्रकारी पूजाविधि ११. ऋषिमंडल पूजाविधि १२. पंचज्ञान पूजाविधि १३. सम्यग्दर्शन पूजाविधि १४. सम्यक् चारित्र ( ब्रह्मचर्यव्रत ) पूजाविधि १५. एकादशगणधर पूजाविधि १६. द्वादशव्रत पूजाविधि १७. चौदहराजलोक पूजाविधि १८. संक्षिप्ता - ष्टकप्रकारी पूजाविधि । १६. आरती, मंगलदीपक, लूण उतारने की विधि । इस भाग के अन्त में पौंखणाविधि, शांतिनाथ - पार्श्वनाथ प्रभु की आरती, आदि का भी उल्लेख है। इस कृति के सम्बन्ध में विशेष यह है कि इस पुस्तक की प्रस्तावना ज्ञानगर्भित है। उसमें कई विषयों पर प्रकाश डाला गया है। मुख्यतः उक्त पूजाओं की रचना करने वाले गुरु भगवन्तों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इसके साथ ही १. लोक साहित्य के उद्भव का इतिहास २. स्तवन - सज्झाय - रास और पूजा साहित्य की विशिष्टता ३ अर्थ ज्ञान की आवश्यकता ४. पूजा का संक्षिप्त इतिहास ५. पूजा का विषय ६. पूज्य - पूजक और पूजन ७. पूजा के प्रकार- द्रव्य और भाव ८. द्रव्यपूजा विधि ६. भावपूजा विधि १०. पंचपरमेष्ठी का स्वरूप ११. रत्नत्रय एवं पंचज्ञान का स्वरूप आदि का विवेचन किया गया है। विधानसंग्रह यह संग्रहित रचना दिगम्बर परम्परा से सम्बन्धित है।' प्रतिष्ठाचार्य पं. वर्द्धमानकुमार सोंरया के द्वारा इस पुस्तक का सम्पादन किया गया है। इस रचना में संस्कृत पद्यों एवं हिन्दी पद्यों का बाहुल्य है। दिगम्बर परम्परा के विधि विधानों एवं पूजा विधानों से सम्बन्धित कृतियों में यह संग्रह अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान , यह संग्रह सन् २००२ में, वीतराग वाणी ट्रस्ट, सैलसागर, टीकमढ़ से प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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