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________________ 466 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य पंचामृत अभिषेक, नवदेवतापूजा, श्री पार्श्वनाथपूजा, श्री धरणेन्द्रपूजा, पद्मावतीपूजा, पद्मावतीसहस्रनाम महाअर्घ्यपूजा अन्त्यनअनुष्ठान, हवन, रथचालन, व्रतनिष्ठापन, तिथि, ग्रह, यक्ष-यक्षी अर्घ आदि । इसमें पार्श्वनाथ स्तोत्र, पद्मावती स्तोत्र, चालीसा, आरती, मंत्र साधना आदि अनेक विषय संग्रहित हैं। इसमें पद्मावतीमंडलविधानयन्त्र, गणधर, सामान्यकेवली और तीर्थंकर के हवन कुंड, १०८ और १००८ कलश रचनायन्त्र तथा पूजन सामग्री भी दी गयी है।' निःसंदेह यह वैधानिक रचना सारभूत सामग्री संयुक्त है। विविधपूजासंग्रह (सचित्र) (भाग १ से ७ तक ) यह संग्रह गुजराती पद्य में है। इसमें पं. वीरविजयजी, रूपविजयजी, पद्मविजयजी, यशोविजयजी, आत्मारामजी, बुद्धिसागरजी आदि के द्वारा रची गई पूजाओं का संकलन किया गया है। ये सभी पूजाएँ वर्तमान में प्रचलित हैं। इन पूजाओं के रचयिता तपागच्छीय परम्परा के अनुवर्त्तक आचार्य एवं मुनि रहे हैं। ये पूजाएँ तपागच्छीय परम्परा में विशेष प्रचलित हैं। यह कृति सचित्र है। इसमें २१ के लगभग चित्र दिये गये हैं। इसके साथ ही इसमें संकलित पूजाओं को सात भागों में विभक्त किया गया है। वह विवरण संक्षेप में इस प्रकार है प्रथम भाग- इसमें कुल ग्यारह पूजाएँ दी गई हैं उनमें आदि की चार पूजाएँ स्नात्रपूजा से सम्बन्धित है किन्तु उनके रचयिता भिन्न-भिन्न हैं । वे चारों पूजाएँ क्रमशः वीरविजय, कविदेवपाल, उपा. देवचन्द्र एवं रूपविजयजी द्वारा रचित है। इसके अनन्तर पाँचवी शांतिनाथकलशविधि, छठी अष्टप्रकारीपूजा, सातवीं पंचकल्याणपूजा, आठवीं नवाणुं प्रकार की पूजा, नौंवी द्वादशव्रतपूजा, दशवीं पैंतालीस आगमपूजा, ग्यारहवीं चौसठ प्रकारीपूजा हैं। ये सभी पूजाएँ श्री वीरविजयजीकृत हैं। द्वितीय भाग - इस भाग में छह पूजाएँ वर्णित हैं उनमें से निम्न चार पूजाएँ रूपविजयजी कृत हैं - १. पंचकल्याणक की पूजाविधि एवं पंचकल्याणक पूजा २. पंचज्ञान की पूजाविधि एवं पंचज्ञान पूजा ३. बीशस्थानक की पूजाविधि एवं बीशस्थानक पूजा ४. पैंतालीस आगम की पूजा ५. अष्टप्रकारी पूजा- दो प्रकार की दी गई हैं। एक देवविजयजी कृत है तथा दूसरी उत्तमविजयजी रचित है। तृतीय भाग- यह भाग नौ प्रकार की पूजा-विधि से समन्वित है। उनके नामोल्लेख निम्नांकित हैं - १. बीशस्थानकतप प्रकार की पूजाविधि एवं बीशस्थानकतप पूजा 9 प्रका. श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट नालासोपारा, मुंबई । २ यह कृति वि.सं. १६७६ में, मेघजी - हीराजी बुकसेलर पायधुनी, मुंबई से प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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