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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/465
वहाँ आकर जिनप्रतिमाओं को प्रणाम किया। उसके बाद लोममयी प्रमार्जनी हाथ में ली। उस प्रमार्जनी से जिनप्रतिमा को प्रमार्जित किया। प्रमार्जित करके सुगन्धित जल द्वारा उन जिनप्रतिमाओं का प्रक्षालन किया। फिर उन पर गोशीर्ष चंदन का लेप किया। गोशीर्ष चंदन का लेप करने के पश्चात् उन्हें सुवासित वस्त्रों से पौंछा। उसके बाद जिन प्रतिमाओं को अखण्ड देवदूष्य युगल पहनाया। फिर पुष्पमाला, गंधचूर्ण एवं आभूषण चढ़ाये। तदनन्तर नीचे लटकती लम्बी-लम्बी गोल मालाएँ पहनायीं। पंचवर्ण के पुष्पों की वर्षा की। फिर जिनप्रतिमाओं के समक्ष विभिन्न चित्रांकन किये एवं श्वेत तन्दुलों से अष्टमंगल का आलेखन किया।
उसके पश्चात् जिन प्रतिमाओं के समक्ष धूप को प्रगट किया। तत्पश्चात् विशुद्ध, अपूर्व, अर्थयुक्त १०८ छन्दों से भगवान की स्तुति की। स्तुति करने के बाद सात-आठ पैर पीछे हटा। पीछे हटकर बाँया घुटना ऊँचा किया तथा दायाँ घुटना जमीन पर झुकाकर तीन बार मस्तक पृथ्वीतल पर नमाया। फिर मस्तक ऊँचा करके दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके 'नमोत्थुणं अरहन्ताण-ठाणं संपत्ताणं' नामक शक्रस्तव का पाठ किया। इस प्रकार अर्हन्त और सिद्ध भगवान् की स्तुति करने के बाद जिनमंदिर के मध्य भाग में आया। उसे प्रमार्जित कर दिव्य जलधारा से सिंचित किया और गोशीर्ष चंदन का लेप किया तथा पुष्पसमूहों की वर्षा की। तत्पश्चात् उसी प्रकार उसने मयूरपिच्छि से द्वारशाखाओं, पुतलियों एवं व्यालों को प्रमार्जित किया। फिर उनका प्रक्षालन कर उनको चंदन से अर्चित किया तथा धूपक्षेप करके पुष्प एवं आभूषण चढ़ाये। इसी प्रकार सूर्याभदेव ने मणिपीठिकाओं एवं उनकी जिनप्रतिमाओं की, चैत्यवृक्ष की तथा महेन्द्र-ध्वजा की पूजा-अर्चना की।
इस विवरण से स्पष्ट होता है कि राजप्रश्नीयसूत्र काल में मन्त्रों के अतिरिक्त जिनपूजा की एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया निर्मित हो चुकी थी। अनुमानतः इसी प्रकार का विवरण वरांगचरित्त के २३ वें सर्ग में भी उपलब्ध होता है। लघुपयावतीमंडलआराधनाविधि
- इस कृति का आलेखन कुन्थुसागरजी ने किया है। यह प्रायः हिन्दी पद्य में है। इसमें जिनशासनरक्षिका पद्मावतीदेवी की आराधनाविधि-वन्दनाविधि, मंडलविधि एवं पूजाविधि कही गई है। वस्तुतः यह कृति पद्मावतीदेवी के पूजा विधान से सम्बद्ध है। इस विधान के समय क्रमशः ये अनुष्ठान किये जाते हैंघटयात्रा, ध्वजारोपण, अंकुरारोपण, संध्यावंदन, पूजामुख, सकलीकरण, महामंडलाराधना, यज्ञदीक्षा, भूमिशोधन, मंडपप्रतिष्ठा, जाप्यानुष्ठान,
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