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________________ 464/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य और आषाढ़ मास की शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमा तक ८-८ दिन देव-इन्द्र जाकर बड़े उत्सव के साथ पूजन करते हैं। इस परम्परा का अनुकरण करते हुए यहाँ भी उक्त तीनों महिनों के अन्तिम आठ दिनों में यह पूजन किया जाता है। १०. कलिकुण्डपार्श्वनाथ पूजा - यह पूजन कलिकुण्डपार्श्वनाथ की आराधना निमित्त किया जाता है इस अतिशय युक्त प्रतिमा की पूजा करने से सभी प्रकार के विघ्न विपत्ति रोग आदि मिट जाते हैं। रत्नत्रयविधान यह रचना पं. आशाधर की है। इसे रत्नत्रयविधि' भी कहते हैं। इसका उल्लेख आशाधरजी ने धर्मामृतग्रन्थ की प्रशस्ति में किया है। राजप्रश्नीयसूत्र जैन उपांग सूत्रों में इसका दूसरा स्थान रहा हुआ है। यह प्राकृत गद्य में रचित है। इसका श्लोक परिमाण २१२० है। मूलतः यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है। इसके प्रथम विभाग में 'सूर्याभ' नामक देव श्रमण भगवान महावीर के समक्ष उपस्थित होता है और वह विविध प्रकार के नाटकों का प्रदर्शन करता है। द्वितीय विभाग में केशी कुमार श्रमण के साथ राजाप्रदेशी का जीव के अस्तित्व और नास्तित्व को लेकर मधुर संवाद प्रस्तुत है। ___इससे भी बढ़कर हमे इस सूत्र में सर्वप्रथम जिनपूजा करने का उल्लेख मिलता है। इससे पूर्व ज्ञाता धर्मकथासूत्र के संक्षिप्त उल्लेख के सिवाय इस विषय की कोई चर्चा परिलक्षित नहीं होती हैं। राजप्रश्नीयसूत्र' में सूर्याभदेव द्वारा की गई जिनपूजा का वर्णन इस प्रकार है- 'सूर्याभदेव ने व्यवसाय सभा में रखे हुए पुस्तकरत्न को अपने हाथ में लिया, हाथ में लेकर उसे खोला, खोलकर उसे पढ़ा और पढ़कर धार्मिक क्रिया करने का निश्चय किया, निश्चय करके पुस्तक रत्न को वापस रखा, रखकर सिंहासन से उठा और नन्दा नामक पुष्करिणी पर आया। फिर नन्दा पुष्करिणी में प्रवेश होकर उसने अपने हाथ-पैरों का पक्षालन किया तथा आचमन कर पूर्णरूप से स्वच्छ और शुचिभूत होकर स्वच्छ श्वेत जल से भरी हुई शृंगार (झारी) तथा उस पुष्करिणी में उत्पन्न शतपत्र एवं सहन पत्र कमलों को ग्रहण किया। फिर वहाँ से चलकर जहाँ सिद्धायतन (जिनमंदिर) था, वहाँ आया। ___ उसमें पूर्वद्वार से प्रवेश करके जहाँ देवछन्दक और जिनप्रतिमा थी ' (क) राजप्रश्नीय सूत्र १६८-२०० (ख) आधार जैनधर्म और तान्त्रिक साधना- डॉ. सागरमल जैन, पृ. ५८-५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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