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हैं। इस पूजन विधान में इन्हीं पंच परमेष्ठियों के १४३ गुणों का वर्णन किया गया है । दिगम्बर परम्परा में अरिहंत भगवान के ४६ गुण, सिद्ध के ८, आचार्य के ३६, उपाध्याय के २५ और साधु के २८ गुण माने गये हैं।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 463
५. ऋषिमण्डलविधान यह विधान मंत्र शास्त्र से सम्बन्धित है। इस मंत्र विधान के माध्यम से सभी प्रकार के मनोरथ सफल होते हैं। सर्व प्रकार की आधि-व्याधि-भय- उपद्रव - कष्ट आदि का नाश होता है।
६. सम्मेदशिखरविधान- इस क्षेत्र से वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर मोक्ष पधारे थे। अतः वहाँ बीस ट्रंकों का निर्माण हुआ है। इस विधान में प्रत्येक ट्रंक की पूजा एवं यहाँ से मोक्ष जाने वाले जीवों की संख्या बतलायी गई है।
७. चौसठऋद्धिविधान यह विधान दिगम्बर जैन समाज में अधिक प्रचलित है। यह विधान इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग रोगादि की शान्ति आदि के लिए किया जाता है। इसका दूसरा नाम शान्तिमण्डलपूजनविधान भी है। इसमें आठ ऋद्धियों के चौसठ अर्घ चढ़ाते हैं ।
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८. पंचमेरूपूजनविधान - जंबूद्वीप के बीच में एक लाख योजन ऊँचा एक गोल पर्वत है। जिसका नाम सुदर्शनमेरु है । धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व तथा पश्चिम दिशा में ८४-८४ हजार योजन ऊँचे दो पर्वत हैं। इसी प्रकार पुष्करद्वीप में भी दोनों दिशाओं में उतने ही बड़े दो पर्वत हैं। उन पाँचों ही मेरु पर्वतों के ऊपर 'पांडुक' नाम का वन हैं वहाँ 'पाण्डुक शिला' है जिस पर तीर्थंकर भगवन्तों का जन्माभिषेक करते हैं। यहाँ कुल चार वन है। इन चारों वनों के चारों दिशाओं में पर्वत बने हुए हैं। प्रत्येक पर्वत के चारों दिशाओं में एक-एक चैत्यालय होने से प्रत्येक पर्वत पर सोलह चैत्यालय हैं अतः पाँच पर्वतों के कुल ८० चैत्यालय होते है । इस विधान के माध्यम से उन चैत्यालयों में बिराजमान प्रतिमाओं की पूजा की जाती है ।
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६. नन्दीश्वरद्वीपविधान - जम्बूद्वीप से आठवाँ द्वीप नन्दीश्वर है । उस द्वीप के चारों दिशाओं में काले रंग के ८४-८४ हजार योजन ऊँचे अंजनगिरि नाम के गोल पर्वत हैं। उन पर्वतों के चारों और एक-एक लाख योजन लंबी चौड़ी चार-चार बावड़ियाँ हैं उन झीलों (बावड़ी ) में दस-दस हजार योजन ऊँचे एक-एक दधिमुख नामक सफेद गोल पर्वत हैं तथा उन झीलों के बाहरी दो-दो कोनों पर एक-एक हजार योजन ऊँचे लालरंग के रतिकर नाम के दो-दो गोल पर्वत हैं यानि प्रत्येक दिशा में एक अंजनगिरि, चार दधिमुख और आठ रतिकर इस प्रकार कुल तेरह - तेरह पर्वत हैं। चारों दिशाओं में कुल ५२ पर्वत हैं। इन प्रत्येक पर्वतों पर एक - एक अकृत्रिम जिन मंदिर हैं उनमें १०८ - १०८ रत्नमय पाँचसौ-पाँच सौ धनुष अवगाहन की मनोहर प्रतिमाएँ हैं। इन नन्दीश्वरद्वीप पर कार्तिक,
फाल्गुन
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