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________________ 460/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य पैंतालीसआगममहापूजनविधि ___ यह कृति तपागच्छीय श्री विजयदेवसूरि के सन्तानीय श्री पद्मविजय के शिष्य श्री रूपविजय द्वारा रचित है। यह महापूजन गुजराती भाषा में रचा गया है। वर्तमान में इस महापूजन का प्रचलन अधिक बढ़ रहा है। इस पूजन में पैंतालीस आगम ग्रन्थों की स्थापना करके प्रत्येक आगम की श्लोक, छंद और ढ़ाल के साथ अष्टप्रकारी पूजा की जाती है। इस महापूजन को प्रारम्भ करने के पूर्व चंदरवा, तोरण, पूंठीया सहित एक मंडप तैयार करना चाहिए अथवा उपाश्रयादि में स्थान की सुविधा हो तो वहाँ ४५ चंदरवा, पूंठीया बांधने चाहिए। आगमसूत्र रखने के लिए अढ़ी फूट ऊँची टेबलें रखनी चाहिए। प्रत्येक टेबल पर एक-एक ठवणी और रुमाल (सूत्र ढंकने के लिए) रखना चाहिए। यहाँ ध्यातव्य है कि पैंतालीस आगम की महापूजन प्रारम्भ करने के पहले कुंभ स्थापना, दीपक स्थापना, भूमिशुद्धि, सकलीकरण न्यास, करन्यास, आत्मरक्षा, छोटिका न्यास, क्षेत्रपाल पूजन, पीठ स्थापना, यंत्रस्थापना, पाँच प्रकार की मुद्रा और प्रार्थना इत्यादि कई विधान सम्पन्न किये जाते हैं। इसके पश्चात् पैंतालीस आगम की पूजा प्रारम्भ होती है। इस कृति के बारह संस्करण निकल चुके हैं, यह तेरहवाँ संस्करण है। इसका संकलन मुनि दीपरत्नसागर ने किया है। इस पूजा का समापन होने पर सोलह विद्यादेवियों का पूजन करते हैं। पंचामृत द्वारा पाँचज्ञान का स्नात्र करते हैं तथा चैत्यवंदन विधि, १०८ दीपक की आरती और शांतिकलश विधि भी करते हैं। पंचमेरुनन्दीश्वरविधान यह कृति मुख्यतः हिन्दी पद्य में रचित है। इसमें मन्त्रों का बहलता के साथ प्रयोग हुआ है। यह विधान कवि पं. टेकचंद विरचित है। यह कृति दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध है। इस पुस्तक के प्रारम्भ में व्रत का माहात्म्य अर्थात पंचमेरु जिनपूजन का उद्यापन बतलाया गया है इसके साथ ही पंचमेरु की स्थापना विधि का उल्लेख किया गया है। इसके पश्चात् १. सुदर्शनमेरु २. विजयमेरु ३. अचलमेरु ४. मन्दरमेरु और ५. विद्युन्मालिमेरु इन पाँचों से सम्बन्धित जिन बिम्बों की अर्घपूर्वक पूजन विधि कही गई हैं। इस कृति के दूसरे भाग में नन्दीश्वरद्वीप की पूजन विधि का वर्णन है इसमें क्रमशः पूर्व दिशा के जिनालय, दक्षिण दिशा के जिनालय, पश्चिम दिशा के .२ यह कृति आगम श्रुत प्रकाशन, अहमदाबाद, ने वि.सं. २०५४ में प्रकाशित की है। ' इस कृति का प्रकाशन वी.सं. २५१६ में सरल जैन ग्रन्थ भण्डार, जबलपुर से हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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