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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/461 जिनालय एवं उत्तर दिशा के जिनालय के जिनबिम्बों की पूजा करने का निर्देश है। ऐसा कृतियाँ अत्यल्प देखने को मिलती है। पंचपरमेष्ठीविधान यह रचना प्रायः हिन्दी पद्य में है। इसके रचयिता राजमल पवैया है। इस कृति में प्रारम्भिक कृत्य के साथ अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पांच परमेष्ठियों की पूजा करने का विधि पूर्वक उल्लेख हुआ है। एक पंचपरमेष्ठी विधान कविवर टेकचन्दजी कृत है, जो सर्वाधिक प्रचलित है। पंचामृतभिषेक पाठ मुनि विमलसागरजी द्वारा संकलित यह रचना संस्कृत गद्य-पद्य मिश्रित हैं। अरिहन्त पूजा-अष्टक मराठी भाषा में दिया गया है। इसमें पंचामृत अभिषेक की विधि के साथ-साथ शान्तिमंत्र, बृहद् शान्ति मंत्र भी दिये गये हैं।' यदि तुलना की दृष्टि से कहें तो श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार जो लघुशांति और बृहदशान्ति पाठ हैं उसी के समकक्ष दिगम्बर परम्परा में शान्तिमंत्र और बृहदशान्तिमन्त्र है। दोनों परम्पराओं के पाठ मन्त्रों में शब्द व अर्थ की दृष्टि से काफी कुछ समानता भी दृष्टिगत होती है। बृहत्स्नात्रविधि यह रचना १३०० श्लोक परिमाण है। इसमें बृहत्स्नात्रविधि का निरूपण हुआ है यह इस कृति के नाम से स्पष्ट हो जाता है।' बृहद्हवनविधि इसके कर्ता श्री नेमिचन्द्र है। बृहद-पूजासंग्रह यह कृति विविध प्रकार की पूजा विधियों से सम्बन्धित है। यह हिन्दी पद्य में निर्मित है। इस कृति में उल्लिखित पूजाएँ खरतरगच्छ परम्परा के आचार्यों एवं मुनियों द्वारा रची गई है। प्रस्तुत कृति की संग्रहित पूजाएँ एवं उसकी विधि का सूचीक्रम निम्नांकित है१. श्री स्नात्रपूजा एवं उसकी विधि- श्री देवचंद्रकृत २. अष्टप्रकारी पूजा-विधि ३. २ प्रका. अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन ए-४, बापूनगर, जयपुर। ' प्रका. भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद्। २ जिनरत्नकोश पृ. २८६ ३ यह पुस्तक कलकत्ता से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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