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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 19
श्रेणियों की अपेक्षा उनका नामनिर्देश इस प्रकार है -
जैन परम्परा में प्रचलित विविध अनुष्ठानों में सामायिक विधि, प्रतिक्रमण विधि, गुरूवन्दन-विधि, चैत्यवन्दन - विधि, प्रत्याख्यानग्रहण - विधि, मुनि को आहार प्रदान की विधि, जिनपूजा-विधि आदि गृहस्थ के नित्यकर्म सम्बन्धी अनुष्ठान माने गये हैं। जैन परम्परा में श्वेताम्बर स्थानकवासी एवं तेरापंथी तथा दिगम्बर तारणपंथ को छोड़कर शेष परम्पराएँ जिनप्रतिमा के पूजन को श्रावक का एक आवश्यक कर्त्तव्य मानती हैं। श्वेताम्बर परम्परा में पूजा सम्बन्धी जो विविध अनुष्ठान प्रचलित हैं उनमें अष्टप्रकारीपूजा, स्नात्रपूजा या जन्मकल्याणकपूजा, पंचकल्याणक - पूजा, लघुशान्तिस्नात्रपूजा, बृहदशान्तिस्नात्रपूजा, नमिऊणपूजा, अर्हत्पूजा, सिद्ध- चक्रपूजा, नवपदपूजा, सत्रहभेदीपूजा, अष्टकर्मनिवारणपूजा, अन्तरायकर्मपूजा, आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त और भी अनेक पूजाएँ रची गई हैं जिनका उल्लेख शोधग्रन्थ में करेंगे। वर्तमान में भक्तामर - महापूजन, जयतिहुअण - महापूजन, पद्मावतीपार्श्वनाथमहापूजन, नवग्रह-पूजन, उवसग्गहरंरं- महापूजन, सरस्वतीदेवी - महापूजन आदि विशेष प्रचलित हैं।
दिगम्बर परम्परा में प्रचलित पूजा अनुष्ठानों में अभिषेकपूजा, नित्यपूजा, देवशास्त्रगुरूपूजा, जिनचैत्यपूजा, सिद्धपूजा आदि के विधान विशेष रूप से प्रचलित हैं। इन सामान्य पूजाओं के अतिरिक्त पर्व दिन सम्बन्धी विशिष्ट पूजाओं का भी उल्लेख मिलता है। पर्व पूजाओं में षोडशकारणपूजा, पंचमेरूपूजा, दशलक्षण-पूजा, रत्नत्रयपूजा आदि का उल्लेख किया जा सकता है।
यहाँ ज्ञातव्य है कि दिगम्बर परम्परा की पूजा पद्धति में बीसपंथ और तेरापंथ में कुछ मतभेद है। जहाँ बीसपंथी परम्परा पुष्प आदि सचित्त द्रव्यों से जिनपूजा करती है, वहाँ तेरापंथी परम्परा पुष्प के स्थान पर रंगीन अक्षतों का उपयोग करते हैं। इसी प्रकार जहाँ बीसपंथ में बैठकर वहीं तेरापंथ में खड़े होकर पूजा करने की परम्परा है। यहाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय यह है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के ग्रन्थों में अष्टद्रव्यों से पूजा के उल्लेख मिलते हैं। इस प्रकार गृहस्थ के नित्यकर्म सम्बन्धी ये विधि-विधान जानने चाहिए।
गृहस्थ के नैमित्तिक कर्म सम्बन्धी अनुष्ठानों का विवरण भी उपलब्ध होता है उनमें सम्यकत्वव्रतारोपण - विधि, बारहव्रतारोपण-विधि, उपधान-विधि, पौषध-विधि, उपासकप्रतिमाग्रहण-विधि, नन्दिरचना - विधि आदि विशिष्ट हैं। दिगम्बर परम्परा में उक्त विधि-विधान वर्तमान में प्रायः प्रचलित नहीं है।
साधु के नित्यकर्म सम्बन्धी जो विधि-विधान कहे गये हैं उनमें से प्रतिक्रमण विधि, सज्झाय विधि, उपयोग विधि, पौरुषी पढ़ने की विधि,
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