SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 488
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 458/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य पूजासंग्रह यह कृति गुजराती पद्य में है। इस कृति में विजयकमलसूरी के शिष्य मुनि लब्धिविजय द्वारा विरचित पूजाओं का संग्रह किया गया है। ये पूजाएँ आत्मशुद्धि की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी हैं। साथ ही ये तपागच्छीय परम्परा में विशेष प्रचलित हैं। इसमें उल्लिखित पूजा विधियों का नाम निर्देश इस प्रकार हैं - १. श्री महावीरस्वामी स्नात्र पूजा विधि २. श्री नवतत्त्व पूजा विधि- इसमें अष्टप्रकारी पूजा का क्रम निम्न है- २.१ प्रथम जीवतत्त्व में जलपूजा विधि २.२ द्वितीय अजीवतत्त्व में चंदनपूजा की विधि २.३ तृतीय पुण्यतत्त्व में पुष्पपूजा विधि २.४ चतुर्थ पापतत्त्व में धूपपूजा विधि २.५ पंचम आश्रवतत्त्व में दीपकपूजा विधि २.६ षष्टम संवरतत्त्व में अक्षतपूजा विधि २.७ सप्तम निर्जरातत्त्व में नैवेद्यपूजा विधि २.८ अष्टम बंधतत्त्व में फलपूजा विधि २.६ नवम मोक्षतत्त्व में सर्वार्घ पूजा विधि ३. पंचज्ञान की पूजा विधि ४. तत्त्वत्रयी (देव, गुरु, धर्म) की अष्टद्रव्य पूजा विधि ५. पंचमहाव्रत की पूजा विधि- यहाँ प्रत्येक महाव्रत की आराधना निमित्त अष्टप्रकारी पूजा करने का निर्देश है। ६. अष्टप्रकारी पूजा विधि ७. बारह भावना की पूजा विधि- यहाँ प्रथम अनित्य भावना में न्हवण पूजा, अशरण भावना में विलेपन पूजा, संसार भावना में वासचूर्ण पूजा, एकत्व भावना में पुष्पमाल पूजा, अन्यत्व भावना में दीपक पूजा, अशुचि भावना में धूप पूजा, आश्रव भावना में पुष्प पूजा, संवर भावना में अष्टमंगल पूजा, निर्जरा भावना में अक्षत पूजा, लोकस्वभाव भावना में दर्पण पूजा, बोधिदुर्लभ भावना में नैवेद्य पूजा और धर्म भावना में फल पूजा करनी चाहिए। पूजन-पाठ-प्रदीप __ यह संग्रह कृति है। इसमें कुल ३८ पूजाओं, भक्तामर आदि स्तोत्र पाठों और चालीसा आदि विविध उपयोगी सामग्री का संकलन हुआ है। इसमें उल्लिखित पूजाएँ ये हैं - १. नित्यनियम पूजा २. देवशास्त्रगुरु सिद्धपूजा (बालाप्रसाद कृत) ३. देवशास्त्र गुरु पूजा ४. श्री बीसतीर्थकर पूजा ५. श्री अकृत्रिम चैत्यालय पूजा ६. सिद्ध पूजातीन प्रकार की कही गई हैं ७. समुच्चयचौबीसी पूजा ८. श्री आदिनाथजिन पूजा २ यह कृति वि.सं. १६८० में नरोत्तमदास रीखबचंद लाडवा शेरी, राधनपुर ने प्रकाशित की है। ' (क) इस कृति का सम्पादन पं. हीरालालजी जैन ने किया है। (ख) इसका प्रकाशन सन् १९६८ में श्री शास्त्र स्वाध्यायशाला, श्री पार्श्वनाथ दि. जैन मन्दिर, बर्फखाने के पीछे दिल्ली से हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy