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________________ 454 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य इसमें कहा गया है कि इन प्रतिमाओं का विधिपूर्वक पूजन करने से सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होती है और मोक्ष सुख की पात्रता बनती है। इस ग्रन्थ में नन्दीश्वर द्वीप में बिराजित जिनबिम्बों की आराधनार्थ जापविधि तथा आठदिनों की आठ तिथियों में करने योग्य पृथक्-पृथक् जापमंत्र भी दिये गये हैं। मण्डल विधान आरंभ करने की विधि भी बताई गई है तथा क्रमशः प्रत्येक (५२) जिनालय की पूजनविधि का निरूपण भी किया गया है। नवग्रहविधान दिगम्बर मुनि मनसुखसागर द्वारा विरचित यह कृति संस्कृत एवं हिन्दी मिश्रित पद्य भाषा में निबद्ध है। इसमें मंत्रों का उल्लेख बहुलता से मिलता है । यह कृति अर्वाचीन प्रतीत होती है । इस कृति का रचनाकाल एवं कृति के लेखक का सत्ता समय ज्ञात नहीं है। यह अपने नाम के अनुसार नवग्रह संबंधी दोषों से मुक्त होने के उपाय प्रस्तुत करती हैं। वस्तुतः इस कृति में नवग्रह दोष निवारण सम्बन्धी विधि-विधान बताये गये हैं। इस के प्रारम्भ में 'मंगलपंचक' दिया गया है उनमें पंचपरमेष्ठी पदों को नमस्कार किया गया है। उसके बाद नवग्रह से सम्बन्धित कई विधि-विधान दिये गये हैं। उनकी संक्षिप्त सूची इस प्रकार है - १. सकलीकरण विधान २. दिग्बंधन विधान ३. विघ्ननिवारण विधान ४. रक्षामंत्र विधि ५. भूमिशुद्धि विधान ६. रक्षाबंधन विधान ७. मुकुट, हार आदि को धारण करने का विधान ८. मंगलकलश स्थापना विधि ६. दीप प्रज्वलन विधि १०. दशदिक्पाल आहान विधि ११. लघु अभिषेक विधि १२ तिलक विधि १३. भूमिप्रक्षालन विधि १४. पीठ प्रक्षालित करने की विधि १५. बिंब को पादपीठ पर स्थापित करने की विधि १६. शांतिधारा विधि १७. सूर्यग्रह अरिष्ट (दोष) निवारक श्री पद्मप्रभु की अष्टप्रकारी पूजाविधि एवं जापविधि १८. चन्द्रग्रह अरिष्ट निवारक श्री चन्द्रप्रभु की अष्टप्रकारी पूजाविधि एवं जापविधि १६. मंगलग्रह अरिष्ट निवारक श्री वासुपूज्यप्रभु की अष्टप्रकारी पूजाविधि एवं जापविधि २०. बुधग्रह अरिष्ट निवारक श्री अष्टजिन १. विमल २. अनन्त ३. धर्म ४. शान्ति ५. कुंथु ६. अर ७. नमि और ८. वर्धमान की अष्टप्रकारी पूजाविधि एवं जापविधि २१. गुरुग्रह अरिष्ट निवारक श्री अष्टजिन १. ऋषभ २. अजित ३. संभव ४. अभिनन्दन ५. सुमति ६. सुपार्श्व ७. शीतल ८. श्रेयांस प्रभु की अष्टप्रकारी पूजाविधि एवं जापविधि २२. शुक्रग्रह अरिष्ट निवारक श्री पुष्पदंत (सुविधिनाथ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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