________________
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/451
दशलाक्षणिकपूजा
प्रस्तुत नाम के चार ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं एक ग्रन्थ के कर्ता मनि मल्लिभूषण है। दूसरी एक रचना मुनि यशकीर्ति की है। तीसरी कृति मुनि सोमसेन ने रची है और एक अन्य रचना विद्यानन्दी के शिष्य मुनि श्रुतसागरजी की है। ये कृतियाँ दशलक्षणपर्व की पूजा विधि से सम्बन्धित है। एक कृति दशलाक्षणिकविधान के नाम से भी मिलती है। दूसरी एक रचना दशलाक्षणिकविधानउद्यापन के नाम से प्राप्त होती है। ये रचनाएँ भी दशलक्षणपर्व सम्बन्धी विधि-विधान एव उद्यापन का निरूपण करती है। दशलक्षणव्रतोद्यापन
____ दशलक्षणपर्व के दस दिनों में दशलक्षणव्रत भी किया जाता है। यह व्रत विधान दिगम्बर परम्परा में प्रचलित है। इस व्रत के पूर्ण होने के बाद भी एक विधि होती है उसे उद्यापन कहते हैं। इस सम्बन्ध में चार कृतियाँ रची गई हैं। एक कृति संस्कृत में मुनि जिनभूषण ने रची है। दूसरी कृति मुनि धर्मचन्द्र द्वारा संस्कृत में रची गई है। एक अन्य कृति मुनि विश्वभूषण की भी संस्कृत में ही है'
और एक कृति रत्नकीर्ति की है। दर्शन-पूजन विधि
इस पुस्तक का संकलन शेखरचन्द जैन द्वारा किया गया है। यह दिगम्बर श्रावकों समाज के श्रावकों लिए अत्यन्त उपयोगी कृति है। इसमें दर्शन-पूजन सम्बन्धी प्रारंभिक जानकारी के साथ-साथ पूजनादि, मंत्रादि, स्तोत्रादि के पाठ अर्थ सहित दिये गये हैं।
सामान्यतः यह पुस्तक पाँच खण्डों में विभक्त है। प्रथमखण्ड में जिनदर्शन विधि एवं जिनपूजनविधि का संप्रयोजन उल्लेख हुआ है। द्वितीय खण्ड में स्तुति, स्तोत्र, मंत्रादि का अर्थ सहित संकलन किया गया है। तृतीय खण्ड नित्य पूजन विधान से समन्वित है। चतुर्थखण्ड में अन्य चौदह पूजाएँ दी गई हैं। पंचमखण्ड पूजा सम्बन्धी विविध सामग्री को प्रस्तुत करता है। इसके छह संस्करण निकाले जा चुके हैं।
५ जिनरत्नकोश पृ. १६८ ' वही. पृ. १६८ २ प्रका. ज्ञान प्रकाशन, बी-२५२, वैशाली नगर, जयपुर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org