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436/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
पहला अभिषेक पुष्पांजलि मिश्रित जल द्वारा किया जाता है। दूसरा अभिषेक सुवर्ण चूर्ण से मिश्रित जल का किया जाता है। तीसरा अभिषेक पाँच प्रकार के रत्न चूर्ण मिश्रित जल से किया जाता है। चौथा अभिषेक कषाय चूर्ण मिश्रित जल द्वारा किया जाता है। पाँचवा अभिषेक नदी-पर्वतादि मिट्टी से युक्त जल द्वारा किया जाता है। छट्ठा अभिषेक दूध-दही आदि पंचगव्य से युक्त जल द्वारा किया जाता है। सातवाँ अभिषेक सदौषधि वर्ग नामक औषधियों के चूर्ण से किया जाता है। आठवाँ अभिषेक मूलिका नामक औषधियों से मिश्रित जल द्वारा किया जाता है। नवमाँ अभिषेक प्रथम वर्गाष्टक वाली औषधियों के चूर्ण से किया जाता है। दसवाँ अभिषेक द्वितीय वर्गाष्टक नामवाली औषधियों से मिश्रित जल द्वारा किया जाता है। ग्यारहवाँ अभिषेक सर्वोषधि नामक औषधि चूर्ण संयुक्त जल से किया जाता है। बारहवाँ अभिषेक कुसुम युक्त जल का किया जाता है। तेरहवाँ अभिषेक कस्तूरी आदि सुगन्धित द्रव्यों के जल द्वारा किया जाता है। चौदहवाँ अभिषेक वासचूर्ण का किया जाता है। पन्द्रहवाँ अभिषेक चन्दन रस मिश्रित जल द्वारा किया जाता है। सोलहवाँ अभिषेक केसर मिश्रित पवित्र जल से किया जाता है। सतरहवाँ अभिषेक विविध तीर्थों के मिश्रित जल से किया जाता है। अठारहवाँ अभिषेक कपूर जल से किया जाता है।
प्रत्येक अभिषेक के अन्त में वाद्यनाद, धूप का उत्पाटन एवं पुष्प का आरोपण अवश्य करना चाहिये। अष्टप्रकारी पूजाविधि गीत और कथाएँ
यह कृति लघु आकार में तथा गुजराती गद्य-पद्य में निबद्ध है। इसका आलेखन गुणरत्नसूरिजी ने किया है। इस कृति का प्रकाशन वर्तमान की आम जनता को ध्यान में रखकर किया गया है। इसमें वर्णित प्रत्येक पूजा तत्सम्बन्धी गीतों, कथानकों और चित्रों से सहित है। प्रस्तुत पूजा की परम उपयोगी कृति यही देखने में आई है। बालकों की दृष्टि से यह और भी उपयोगी प्रतीत होती है। परमात्मा के उपासकों एवं परमात्मा के प्रति भक्ति बढ़ाने वाले आराधकों को सामूहिक प्रयोग के साथ इसका पठन करना चाहिए। अष्टोत्तरीस्नात्रविधि
इस नाम की दो रचनाएँ है। दोनों रचनाएँ अज्ञातकर्तृक है। एक रचना 'बृहत्स्नात्रविधि' के नाम से प्रसिद्ध है। उस पर वृत्ति भी लिखी गई है। इसमें १०८ बार स्नात्र करने की विधि वर्णित है। जैन परम्परा में मंगलकारी उत्सव
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