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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 435 अभिषेक करते हैं। उस समय क्षीरसमुद्र, गंगानदी, सिंधुनदी, पद्मादिसरोवर से उत्तम जल लाया जाता है तथा हिमवंतपर्वत, मेरूपर्वत आदि स्थानों से सुगंधी औषधियां लायी जाती है और उन जलौषधियों के द्वारा अभिषेक जल तैयार किया जाता है वर्तमान में भी नूतन जिनबिम्बों की प्राणप्रतिष्ठा का विधान होता है तब जन्मकल्याण महोत्सव के दिन अठारह अभिषेक का विधान किया जाता है अतः स्पष्ट है कि अठारह अभिषेक का विधान जन्मकल्याणक से सम्बन्धित है। यह अनुष्ठान सामूहिक रूप से सम्पन्न होता है। सामूहिक आराधना में भावोल्लास की वृद्धि अनन्तगुणा होती है। इससे सम्यग् दर्शन का गुण निर्मल बनता है। कितने ही जीव अभिषेक करते-करते भावोल्लास के माध्यम से ग्रन्थि भेद करके मोक्ष का बीजरूप समकित गुण को प्राप्त कर लेते हैं। वर्तमान में प्रायः जिनालय की वर्षगाँठ के उत्सव पर अथवा वर्षभर में किसी विशेष प्रसंग पर एक बार यह विधान अवश्य ही किया या करवाया जाता है। इस सम्बन्ध में सामान्य मान्यता यह है कि अठारह अभिषेक का अनुष्ठान करने से मन्दिर का वातावरण पवित्र बन जाता है आशातनाओं से दूषित प्रतिमाएँ निर्मल बन जाती है एवं मूर्ति का मैलापन आदि भी दूर हो जाता है। इसमें यथार्थता कितनी है ? यह आचार्यों और विधिकारकों के लिए सोचनीय है ? संक्षेपतः इसमें अठारह प्रकार के अभिषेक की क्रमिक विधि का निरूपण किया गया है। अष्टादश अभिषेकों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री की सूचि भी दी गई हैं तथा अन्त में चार प्रकार की सचित्र मुद्राएँ उल्लिखित हैं जो इस विधान में अनिवार्य रूप से प्रयुक्त होती हैं। अष्टादश- अभिषेक बृहद्विधिः यह कृति श्री शान्तिस्नात्रादिविधिसमुच्चय ( खण्ड - ३) में उपलब्ध है। यह मन्त्र एवं श्लोक प्रधान रचना है। इसमें अठारह अभिषेक विधि गुजराती भाषा में वर्णित है। यद्यपि प्रस्तुत विधि का विवरण कई ग्रन्थों में उपलब्ध होता है तथापि इस कृति में अत्यन्त विस्तार के साथ उल्लिखित हुई है। वस्तुतः यह विधान शुद्धिकरण की अपेक्षा से किया जाता है। साथ ही नवीन बिम्बों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाते-ले जाते हुए किसी प्रकार की आशातना हुई हों, तो उसका निवारण करने के लिए और जिनालय को पवित्रतम बनाये रखने के उद्देश्य से भी किया जाता है। सामान्यतया इस विधान में अठारह प्रकार की भिन्न-भिन्न औषधियों, वनस्पतियों, सुगन्धित पदार्थों पवित्र जलों के द्वारा बिम्ब का अभिषेक किया जाता है- जैसे कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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