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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/433 अर्हदेवमहाभिषेकविधि यह रचना अज्ञातकर्तृक है।' कृति नाम से ज्ञात होता है कि इसमें अरिहन्तबिम्ब की अभिषेक विधि विस्तार के साथ प्रतिपादित हुई है। अर्हत्भक्तिविधान इसके कर्ता पं. आशाधर है। इसमें अरिहन्त परमात्मा की भक्ति का वर्णन होना चाहिए। हमें इसकी मूल कृति प्राप्त नहीं हुई हैं। अष्टकर्मचूर्णिपूजा यह रचना दिगम्बर मुनि गुणभूषण की है। इसमें अष्टकर्म को चूर करने की पूजा विधि का उल्लेख हुआ है ऐसा कृति नाम से अवगत होता है। मूल कृति हमारे देखने में नहीं आई है। अतः इसके बारे में विशेष जानकारी देना असम्भव है। अष्टविधपूजन इसमें अष्टप्रकारी पूजा विधान की चर्चा है। हमें यह रचना भी प्राप्त नहीं हुई है। अष्टापदतीर्थपूजा यह पुस्तक गुजराती गद्य-पद्य में निबद्ध है। मूलपूजा के रचयिता कवि दीपविजयजी है। यह कृति अर्थ सहित प्रकाशन में आई है। जैन ग्रन्थों में पाँच प्रकार के लोकोत्तर स्थावर तीर्थ कहे गये हैं उनमें 'अष्टापदतीर्थ' का भी नाम है। वर्तमान में यह प्रश्न बहुत चर्चित है कि अष्टापद तीर्थ कहाँ है? जैन और जैनेत्तर उसे हिमालय के एक किनारे मानते हैं परन्तु यह मात्र अनुमान है। आगमिक दृष्टि से क्षेत्रसमास में कहा गया है कि जम्बूद्वीप जगती के दक्षिण किनारे से उत्तर में और शाश्वत वैताढ्य पर्वत से दक्षिण भाग में मध्य आर्य खंड में अयोध्या नगरी आई हुई है उसके नजदीक में अष्टापद तीर्थ मूल स्वरूप में है। इस प्रकार दक्षिण द्वार से यह नगरी एक सौ चौदह योजन और M 'जिनरत्नकोश पृ. १६ २ वही पृ. १६ ३ वही पृ. १८ वही पृ. १६ इसका प्रकाशन वि.सं. २०१४ में, श्री जैन साहित्य वर्धक सभा, अहमदाबाद से हुआ है। क्षेत्रसमास गा. ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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