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________________ 432 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य ग्रह सौम्य बन जाते हैं तथा मध्यस्थ ग्रह बलशाली बन जाते हैं। यहाँ उल्लेख है कि अर्हत् की स्नात्रविधि करने के बाद अनुक्रम से ग्रहों को अभिषेक करना चाहिये। उसके बाद संघ अथवा गच्छ की पूजा करनी चाहिये अथवा मुनियों का पूजन करना चाहिये। अन्त में बताया गया है कि जो जीव पुण्यशाली होता है वही प्रशंसनीय, आयुष्यकारक, यशवृद्धिदायक, समृद्धिकारक और सुख-परंपरा प्रदायक जिनाभिषेक विधि को सम्पन्न करता है । निष्कर्षतः इस रचना में अर्हदभिषेक का प्राचीनतम स्वरूप दृष्टिगत होता है जो किंचिद् परिवर्तन के साथ वर्तमान परम्परा में भी प्रचलित है। इस कृति की प्रत्येक गाथाएँ और श्लोकों का भावार्थ पढ़ने जैसा है। प्रत्येक स्नात्र का भाववाही वर्णन किया गया है। इस कृति के अन्त में परिशिष्ट विभाग दिया गया है जो पाँच भागों में विभक्त है। पंचम परिशिष्ट में जिनप्रभसूरिरचित देवपूजाविधि दी गई है। अभिषेकविधि यह रचना प्रतिष्ठा विधि से सम्बन्धित प्रतीत होती है।' इसके लिए 'बृहचन्द्रटीकाभिषेक' नामक कृति को देखने का निर्देश किया है। यह कृति पं. आशाधर की बतायी है। इस नाम की एक कृति और है वह अज्ञातकृत है। अभिषेक पूजा यह रचना अधिकांश हिन्दी पद्य में है। मूलतः पूज्यपादस्वामी द्वारा रचित अभिषेक पाठ का गणिनीज्ञानमती जी ने हिन्दी पद्यानुवाद किया है। यह पद्यानुवाद काही संग्रह है। इसमें मुख्य रूप से नवदेवता पूजन, सिद्धपरमेष्ठी पूजा, बाहुबली पूजा, शान्ति-कुंथु-अरतीर्थंकर पूजा, महावीर पूजा, चौबीसजिन पूजा, निर्वाणक्षेत्र पूजा के अभिषेक, पूजा और पाठ दिये गये हैं । प्रस्तुत पूजाओं के प्रारंभिक और अन्त्य कृत्य भी बताये गये हैं। यह कृति दिगम्बर परम्परा के अनुसार रची गई हैं साथ ही नित्यप्रति जिनेन्द्रदेव का अभिषेक - पूजन करने वाले साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है। अर्हत्अभिषेक विधि यह रचना संस्कृत में है। इसमें अरिहन्त प्रतिमा की अभिषेक विधि का वर्णन हुआ है। यह कृति हमें उपलब्ध नहीं हो पाई है। अतः विशेष चर्चा करना संभव नहीं है। 9 जिनरत्नकोश पृ. १४ २ प्रका. दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर (मेरठ) ३ जिनरत्नकोश पृ. १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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