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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/411 लेना आवश्यक प्रतीत होता है, क्योंकि मुद्रा जीवन और व्यवहार को प्रभावित करती है। इसमें लिखा हैं कि 'जैसी मुद्रा होती है वैसे भाव होते हैं और जैसे भाव होते हैं वैसी मुद्रा बनती है'। मुद्रा द्वारा भावों को अभिव्यक्त किया जाता है। यह प्रक्रिया अंतरंग मस्तिष्क से संबद्ध है। अतः अपने आप एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाती है। कुछ मुद्राएँ संस्कारगत होती हैं। चाहे-अनचाहे परिस्थिति उत्पन्न होते ही व्यक्ति उस मुद्रा में आ जाता है। जैसे- चिन्ता से घिरते ही आदमी के हाथ सहज ही मस्तिष्क या ठुड्डी पर आ जाते हैं। किसी सवाल का उत्तर स्मृति-पटल पर नहीं आ रहा हो तो व्यक्ति आकाश या छत की ओर निहारने लगता है। सर्दी लगते ही व्यक्ति अपने आप को उससे बचाने के लिए हाथों की मुट्ठियाँ बनाकर काँख में दबाता है। अकड़ और अहंकार के भाव को अभिव्यक्ति देने के लिए भी इसी तरह की मुद्रा बनाता है। विनय के भावों को अभिव्यक्त करने के लिए व्यक्ति दोनों हाथों को मिलाकर नमस्कार मुद्रा में स्थिर हो जाता है। इन मुद्राओं की कहीं कोई शिक्षा नहीं दी जाती, बल्कि ये संस्कारगत रूप से अपने आप ही उभर आती हैं और व्यक्ति इनका उपयोग कर लेता है। आसनों के विभिन्न प्रकार भी एक प्रकार की मुद्राएँ हैं जिन्हें अंग्रेजी में पोज या पोस्टर कहा जाता है। देवताओं को मुदित करने और पाप का नाश करने के कारण इसे मुद्रा कहा है। मुद्राएँ केवल भौतिक अभिसिद्धि के लिए ही नहीं होती, अपितु आध्यात्मिक विकास के लिए भी उनका उपयोग किया जाता है। जैसे आसनों की संख्या असंख्य हैं वैसे ही मुद्राओं की संख्या भी असीमित हैं। मुद्राएँ दो प्रकार की कही गई हैं १. स्थूल और २. सूक्ष्मा स्थूल मुद्राएँ हठयोग से सम्बन्धित होती है और सूक्ष्म मुद्राएँ योगतत्त्व से समन्वित होती है। योग मुद्रा की विधि जान लेने पर सहज रूप से सूक्ष्म मुद्राओं का उपयोग कर परिणाम को प्राप्त किया जा सकता है। मुद्राएँ व्यक्ति के शरीर में स्विच बोर्ड हैं, शरीर में स्थित चेतना को जगाने में मुद्राएँ सहयोगी बनती है। कुछ मुद्राएँ तत्काल प्रभाव डालती हैं तो कुछ लम्बे समय के पश्चात् अपना प्रभाव दिखा पाती हैं। मुद्राएँ व्यक्तित्व और स्वभाव परिवर्तन में अपना मूल्यवान सहयोग प्रदान कर सकती हैं। भगवान महावीर ने अभयमुद्रा का प्रयोग जनता के सामने प्रस्तुत कर अहिंसा की स्थापना की थीं। मुद्रा ध्यान का अभिन्न अंग है। ध्यान की किसी भी अवस्था में मुद्रा अवश्यंभावी होती है। दिव्य शक्तियों से परिवेष्टित देवी-देवताओं की अपनी मुद्राएँ होती हैं। मुद्राओं के संकेत द्वारा उस दिव्य शक्ति से संपर्क स्थापित किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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