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जैनागमों में योग साधना के अर्थ में 'ध्यान' शब्द का प्रयोग हुआ है। यहां ध्यान का अर्थ है अपने योगों को आत्मचिंतन में केन्द्रित करना। जैन अवधारणा में एक ओर योग-साधना के लिए प्राणायाम आदि को भी आवश्यक माना है, क्योंकि इस प्रक्रिया से शरीर को साधा जा सकता है, रोग आदि का निवारण किया जा सकता है और काल-मृत्यु के समय का परिज्ञान किया जा सकता है, परन्तु साध्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता। इसके लिए ध्यान-साधना उपयुक्त मानी गई है। इससे योगों में एकाग्रता आती है, नये कर्मों का आगमन रुकता है और पुराने कर्म क्षीण हो जाते हैं। अंततः साधक समस्त कर्मों का क्षय करके योगों का निरोधकर निर्वाण पद को पा लेता है।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 403
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यहाँ उपर्युक्त विवरण से इतना निश्चित है कि व्रत, तप, ध्यान, स्वाध्याय, आवश्यक आदि क्रियाएँ योगसाधना के विभिन्न रूप हैं, जो आत्मा को मोक्षमार्ग की ओर ले जाते हैं तथा वे सभी क्रियाएँ जो विधि-विधान के नाम से व्यवहृत होती हैं। योगसाधना की कोटि में गिनी जा सकती हैं। अतः यह कहना निर्विवाद होगा कि आचार्य हरिभद्र के योग विषयक ग्रन्थ विधि-विधान से सम्बन्ध रखते हैं। आचार्य हरिभद्र के योगविषयक मुख्य चार ग्रन्थ हैं १. योगबिन्दू, २ . योगदृष्टिसमुच्चय, ३. योगशतक और ४. योगविंशिका ।
योगबिन्दु
यह कृति संस्कृत के ५२७ पद्यों में गुम्फित है। इस ग्रन्थ में सर्वप्रथम योग के अधिकारी का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो जीव चरमावर्त्त में रहता है अर्थात् जिसका संसार परिभ्रमण का काल मर्यादित हो गया है, जिसने मिथ्यात्व ग्रन्थि का भेदन कर लिया है और जो शुक्लपक्षी है, वह योग साधना का अधिकारी है।
आचार्य हरिभद्र ने योग के अधिकारी जीवों को चार भागों में विभक्त किया है- १. अपुनर्बन्धक, २. सम्यग्दृष्टि, ३. देशविरति और ४. सर्वविरति । योगबिन्दु ग्रन्थ में उक्त चार भेदों के स्वरूप एवं अनुष्ठान पर विस्तार से विचार किया गया है।
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चारित्र अधिकार मे पांच योग भूमिकाओं का स्वरूप वर्णित किया है १. अध्यात्म, २. भावना, ३. ध्यान, ४. समता और ५. वृत्ति - संक्षय। ये अध्यात्म आदि योगसाधनाएँ देशविरति नामक पंचम गुणस्थान से शुरु होती है। अपुनर्बन्धक एवं सम्यग्दृष्टि अवस्था में चारित्र मोहनीय की प्रबलता रहने के कारण योग बीज रूप में रहता है, वह अंकुरित एवं पल्लवित नहीं होता । अतः योग-साधना का विकास देशविरति से माना गया है। योग साधना के पाँच चरण संक्षेप में इस प्रकार हैं -
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