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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/399 १. दीर्घ-श्वास प्राणायाम विधि, २. संहिता-कुंभक प्राणायाम, ३. सूर्यभेदी प्राणायाम, ४. चन्द्रभेदी प्राणायाम, ५. अनुलोम-विलोम (समवृत्ति) प्राणायाम, ६. उज्जायी प्राणायाम, ७. शीतली प्राणायाम, ८. शीतकारी प्राणायाम, ६. भस्त्रिका प्राणायाम, १०. सूक्ष्म- भस्त्रिका प्राणायाम, ११. भ्रामरी प्राणायाम, १२. मूर्छा प्राणायाम, १३. केवल कुंभक प्राणायाम, १४. कपालभाति प्राणायाम। इन प्रत्येक प्राणायाम का स्वरूप निम्नलिखित छः प्रकार से कहा गया है १. प्राणायाम का अर्थ, २. प्राणायाम विधि, ३. प्राणायाम की अवधि, ४. प्राणायाम में रखने योग्य सावधानियाँ, ५. प्राणायाम से होने वाले लाभ, ६. प्राणायाम के चित्र। इसके अनन्तर प्राण के प्रकार, प्राण का वैज्ञानिक आधार, प्राणवायु और प्राण में अन्तर, प्राण-प्रयोग की प्रक्रिया, प्राणकेन्द्र और उनका जागरण तथा प्राणायाम में रखने योग्य सामान्य सावधानियाँ इत्यादि पर प्रकाश झाला गया है। अन्त में तीन परिशिष्ट दिये गये हैं जिनमें कृति की समग्र सारभूत तथ्यों को संग्रहित कर समाविष्ट कर दिया गया है। प्रथम परिशिष्ट में बालवृद्ध की अपेक्षा, प्रौढ़ व्यक्तियों की अपेक्षा और युवक वर्ग की अपेक्षा आसनक्रम एवं आसन की अवधि कही गई है। द्वितीय परिशिष्ट में महिलाओं की अपेक्षा योगासन-प्राणायाम के नियम बताये गये हैं साथ ही आसनक्रम एवं आसन अवधि का भी निर्देश है। तृतीय परिशिष्ट में योगासन और रोग चिकित्सा का उल्लेख किया है अर्थात् किस रोग निवारण के लिए कौन-कौन से आसनादि उपयोगी है। स्पष्टतः यह योग साधना विधि की अमूल्य कृति है। इसमें प्रस्तुत विषयवस्तु की भाषा सरल सहज और बुद्धिगम्य है। मुद्राविज्ञान यह कृति' हिन्दी गद्य में लेखक पं. रजनीकांत उपाध्याय की है। यह जैन कृति नहीं है तथापि इसमें वर्णित कुछ मुद्राएँ जैन परम्परा से सम्बन्ध रखती हैं। लेखक ने मुद्रा स्वरूप एवं मुद्रा विधि का परिचय देने के पूर्व यह कहा है कि मुद्रा विज्ञान पराविद्याओं में एक महत्त्वपूर्ण विद्या है, जिसके द्वारा मानव शरीर के स्थूल व सूक्ष्म सम्पूर्ण स्नायुमण्डल को शान्त किया जा सकता है। मानव के आध्यात्मिक विकास के लिए मुद्रा विज्ञान अत्यन्त ही उपयोगी है। यह योग का एक अंग है। योग के अनुसार मन की शान्त स्थिति से अनन्त शक्तियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। मन के शान्त हुए बिना योग अथवा आध्यात्मिक साधना में अग्रसर ' यह पुस्तक 'डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि नई दिल्ली' से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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