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400/योग-मुद्रा-ध्यान सम्बन्धी साहित्य
होना संभव नहीं है। इन विचित्र रहस्यमयी विद्याओं को वेदों में तथा बौद्ध व जैन साहित्य में विस्तार से वर्णित किया गया है। इन सभी विद्याओं का अंतिम लक्ष्य मोक्ष रहा है, परन्तु मोक्ष प्राप्ति के पूर्व मानव जीवन का आध्यात्मिक विकास आवश्यक है। मुद्रा विज्ञान उन विद्याओं में से ही एक है जो मानव का सर्वतोमुखी विकास करती हैं। इस विद्या को अभी तक कोई महत्ता नहीं दी गयी। यदि इसे हम अपनी जीवन शैली का एक आवश्यक अंग बना लें, तो अपने जीवन को सफल, समृद्ध व आनन्दमय बना सकते हैं।
वस्तुतः मुद्रा विज्ञान परासाधना का एक महत्त्वपूर्ण अंग है और सभी प्रकार की उपासनाओं के लिए इसके प्रयोग विधि को किसी न किसी से दृष्टि से अनिवार्य माना है। मुद्रा प्रयोग एवं उसकी विधि की जानकारी करने से पूर्व यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि मानव शरीर प्रकृति की सर्वोत्तम कृति है। यह सम्पूर्ण प्रकृति एवं हमारा शरीर पंचतत्त्व से निर्मित है। ये तत्व हैं - अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। इन पंचतत्त्वों की विकृति के कारण ही प्रकृति में असंतुलन एवं शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। मानव शरीर की पाँचों उंगलियां पंच तत्त्व हैं, जिन्हें इन उंगलियों की सहायता से घटा-बढ़ाकर संतुलित किया जा सकता है। उंगलियों की विशेष मुद्राएँ बनाकर हम आध्यात्मिक, शारीरिक व मानसिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। हमारे मनीषियों ने भी मन व शरीर को शांत रखने के लिए विभिन्न मुद्राओं का प्रयोग किया था।
ग्रन्थों में उल्लिखित मुद्राओं में से कुछ मुद्राओं को छोड़कर लगभग सभी मुद्राएँ किसी भी आसन में बैठकर चलते-फिरते, सोते-जागते कभी भी की जा सकती हैं। इनके लिए कोई विशेष नियम नहीं है। इनमें कुछ मुद्राएँ तो ऐसी हैं जो तत्क्षण ही लाभ देती हैं। एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा है - अपानमुद्रा, जिसके द्वारा हृदय सम्बन्धी रोग को तुरन्त ही नियन्त्रित किया जा सकता है। इसी प्रकार शून्यमुद्रा के द्वारा कान के दर्द को तुरन्त दूर किया जा सकता है। ज्ञानमुद्रा से क्रोध पर तुरन्त नियंत्रण किया जा सकता है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि मुद्रा प्रयोग के सही परिणाम तभी संभव है जब आत्मा, मन और शरीर पूरी तरह से सात्त्विक, शांत एवं पवित्र हों। मुख्यतः मुद्राएँ दो प्रकार की होती हैं। पहले प्रकार की मुद्राएँ वे हैं जिन्हें यौगिक मुद्रा कहा जाता है इनके लिए यौगिक आसन की आवश्यकता होती है। दूसरे प्रकार की मुद्राएँ वे हैं जिनके लिए किसी निश्चित आसन की आवश्कता नहीं होती। इन मुद्राओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार के उपचार किये जा सकते हैं, चूंकि मुद्रा विज्ञान शरीर के विभिन्न तत्त्वों की स्थिति पर आधारित है। इसलिए ये मुद्राएँ शरीर में तत्त्व
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