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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/391
जाते हैं। यहाँ प्राणायाम का नामोल्लेख मात्र ही कर रहे हैं। ये प्राणायाम जैविक शान्ति, शारीरिक स्वस्थता एवं आध्यात्कि विकास के लिए प्रयुक्त करने जैसे हैं। प्राणायाम का अर्थ है - प्राण वायु को संयमित, नियंत्रित एवं अनुशासित करना। नियंत्रित किया हुआ प्राण जीवन प्रगति में महान् सहयोगी बनता है। आत्मा का सबसे निकटवर्ती पडौसी प्राण है। अतः प्राणायाम से प्राण-साधना का प्रारम्भ करना चाहिए।
यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि प्राणायाम करने वाले साधक को प्राणायाम से पूर्व बंधों का अभ्यास कर लेना चाहिए। बंधों की साधना के बिना प्राणायाम विशेष फलदायी नहीं होते हैं बंध तीन प्रकार के कहे गए हैं १. मूलबंध, २. जालंधरबंध और ३. उड्डियान बंध। इन बंधों के प्रयोग की विधि एवं इससे होने वाले लाभ भी बताये गये हैं। प्रस्तुत कृति के पंचम अध्याय में इन बंधों की चर्चा करते हुए प्राणायाम की संक्षिप्त विधि कही गई है तथा प्राणायाम के शास्त्रोक्त आठ नाम उल्लिखित किये गये हैं। इसी क्रम में आचार्य हेमचन्द्रकृत योगशास्त्र के आधार पर चार प्रकार के प्राणायाम का उल्लेख किया गया है, उनकी परिभाषा एवं विधि का भी सूचन किया है। वे चार प्रकार निम्न हैं - १.प्रत्याहार प्राणायाम, २.शांत प्राणायाम, ३.उत्तर प्राणायाम, ४.अधर प्राणायाम
आगे रोग चिकित्सा के सन्दर्भ में उन्नीस प्रकार के प्राणायाम कहे हैं साथ ही प्राणायाम का स्वरूप, विधि एवं लाभ भी बताये गये हैं। प्राणायाम के नाम ये हैं - १. प्राणसंप्रेषणक्रिया प्राणायाम, २. नाड़ीशोधन प्राणायाम, ३. आयुवर्धक प्राणायाम, ४. पाचनवर्धक प्राणायाम, ५. उदरशक्तिवर्धक प्राणायाम, ६. कब्जनिवारक प्राणायाम, ७. मोटापा घटाने वाला प्राणायाम, ८. रक्तचापशामक प्राणायाम, ६. कफ निवारक प्राणायाम, १०. जुखाम निवारक प्राणायाम, ११. कण्ठ-रोग-निवारक प्राणायाम, १२. तनाव-नाशक प्राणायाम, १३. शीत-शामक प्राणायाम, १४. क्षुधा-शामक प्राणायाम, १५. कुण्डलिनी-जागरण प्राणायाम, १६. संदेश-प्रेषक प्राणायाम, १७. वासना-शोधक प्राणायाम, १८. इच्छितसफलता-दायक प्राणायाम, १६. पररोग-निवारक प्राणायाम
अन्त में प्राणायाम करने का अधिकारी कौन हो सकता है इस विषय पर भी चर्चा की गई है। उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि प्राणायाम की साधना जीवन-शान्ति, जीवन-विकास, जीवन-स्वस्थता और जीवन-प्रसन्नता की साधना है।
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