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________________ 390 / योग- मुद्रा - ध्यान सम्बन्धी साहित्य क्षेत्र मन से बहुत व्यापक है । मन कभी सोता है, कभी निष्क्रिय होता है, किन्तु प्राण का प्रवाह अविरल बहता रहता है। प्रत्येक प्राणी के शरीर में प्राण - विद्युत विद्यमान है किन्तु प्रतिकूल आहार, विहार तथा दुर्बल इच्छा शक्ति के कारण लोग इन्हें जागृत नहीं कर पाते। यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात हैं कि हमारे शरीर में जो चुम्बकीय शक्ति है वह संपूर्ण पृथ्वी से भी अधिक है, किंतु इसका जागरण संकल्प शक्ति से किया जा सकता है। सम्मोहन, प्लेंचिट पर आत्माओं को बुलाना, विचार सम्प्रेषण, तत्क्षण रोगचिकित्सा तथा असाधारण चमत्कार ये सब हमारी जागृत प्राणशक्ति के ही परिणाम हैं। यहाँ तक कि स्वास्थ्य का मूल हेतु भी प्राण है और अस्वास्थ्य को स्वास्थ्य में बदलने का हेतु भी प्राण है। इसलिए उसे जीवन भी कहा जा सकता है और चिकित्सा भी कहा जा सकता है। चिकित्सा की अनेक पद्धतियाँ हैं। कुछ औषधीय और कुछ अनौषधीय । आयुर्वेदी, एलोपेथी, होम्योपेथी आदि औषधीय चिकित्सा की पद्धतियाँ है । चुम्बक चिकित्सा, सूर्यरश्मि चिकित्सा, रत्न चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा, आध्यात्मिक चिकित्सा ये सब अनौषधीय चिकित्सा पद्धतियाँ हैं। दोनों का अपना-अपना मूल्य है और उपयोग है । पर यह कहना सर्वथा निरापद है कि सब चिकित्साओं का मूल आधार प्राण चिकित्सा है। यह अनुभवगत प्रत्यक्ष है कि जब- जब मन पर अनुकूल-प्रतिकूल भाव संवेदनाओं का प्रभाव पड़ता है, हमारी प्राणधारा अस्त-व्यस्त हो जाती है और प्राणधारा अस्त-व्यस्त होते ही हम शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक तनावों से घिर जाते हैं। इसलिए साधना के क्षेत्र में प्राणधारा पर संयम रखने की बात विशेष महत्त्व रखती है। प्राणधारा का संतुलन यथावत् बना रहे, प्राण शक्ति का जागरण होता रहे, उसके लिए विधिवत् प्राणायाम साधना की आवश्यकता है। प्राणायाम के द्वारा ही प्राणशक्ति का सम्यक् संचालन होता है। अब हम प्रस्तुत कृति में उल्लिखित प्राणायाम के विविध प्रकारों को जानने का प्रयत्न करेगें। ये सभी प्राणायाम विधिपूर्वक ही सम्पन्न होते हैं। इस साधना में की गई किंचित् अविधि भी सही परिणाम नहीं दे पाती है। प्रस्तुत कृति ग्यारह अध्यायों में विभक्त है जिनमें प्राणसाधना की कुछ चमत्कारी घटनाएँ, प्राणायाम के साथ आहार का सम्बन्ध कैसा हो? महर्षि अरविंद और आचार्य हेमचन्द्र की दृष्टि से प्राणायाम, प्राणायाम के मौलिक लाभ, प्राणायाम - विधि और प्रयोग, प्राणायाम से रोग चिकित्सा इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। हमारा प्रयोजन प्राणायाम के प्रकार और उनकी विधि से है । इस कृति में कुल मिलाकर इकतीस प्रकार के प्राणायाम प्रयोग बताये गये हैं जो विधिपूर्वक ही सम्पन्न किये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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