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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/389 शरीर की सूक्ष्म प्रक्रिया तक पहुँचाती है। अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के इच्छुक व्यक्ति के लिए यह नितांत अनिवार्य है। शरीर प्रेक्षा से यह लक्ष्य सहज सिद्ध हो जाता है। प्रस्तुत कृति में आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से शरीर क्या है? शरीर प्रेक्षा क्यों करनी चाहिए? शरीर प्रेक्षा प्रयोग विधि और उसकी निष्पत्ति की चर्चा की गई है। शरीर-प्रेक्षा का प्रयोग हर एक व्यक्ति कर सकता है। यह कृति पाँच अध्यायों में विभक्त है। हमारा मुख्य प्रयोजन शरीरप्रेक्षा विधि से है। इस विधि के अन्तर्गत मुख्य रूप से तीन चरण कहे गये हैं - १. शरीर की गहराई को देखने का प्रयोग, २. शरीर-प्रेक्षा का क्रम और ३. सम्पूर्ण शरीर की यात्रा विधि। इन तीनों चरणों को मूल कृति के माध्यम से सुस्पष्टतः समझने का प्रयत्न किया जाना चाहिए । इसमें 'शरीर-प्रेक्षा-विधि' को बहुत सुन्दर ढंग से समझाने का प्रयास किया है। हर साधक के लिए यह प्रयोग अनिवार्य प्रतीत होता है। प्रेक्षाध्यान : प्राण-चिकित्सा यह कृति' साध्वी राजीमती द्वारा आलेखित है। इसमें प्राणशक्ति के विकास पर बल दिया गया है साथ ही कई प्रकार के प्राणायाम को विधिपूर्वक समझाया गया है। इस कृति के प्रारम्भ में लिखा है कि हमारा स्वास्थ्य प्राणशक्ति (Vilat Force) पर ही निर्भर है। प्राण चिकित्सा योगियों की महत्त्वपूर्ण देन हैं। प्राण के बिना अन्य चिकित्सा पद्धतियाँ भी उपयोगी नहीं बन पाती। हमारा शरीर जिन शक्तियों से संचालित होता है, उनमें से एक महत्त्वपूर्ण शक्ति है प्राण। प्राण शक्ति के विकास से शरीर तो स्वस्थ बनता ही है पर हम आध्यात्मिक स्वास्थ्य जो कि हमारा मूल साध्य है, को भी प्राप्त कर सकते हैं। वस्तुतः प्राण क्या है? इस कृति के माध्यम से प्राण की परिभाषा को अनेक प्रकार से समझ सकते हैं। प्राण उस शक्ति का नाम हैं जिसके द्वारा मानव सोचता है, बोलता है, तथा भांति-भांति की क्रियाएँ करता है। आत्मानुभूति के पूर्व जो कुछ हमारे पास महत्त्वपूर्ण हैं वह प्राण शक्ति है। हमारे आस-पास जो शक्ति, ऊर्जा, प्रकाश और चुंबकीय धाराएँ गुजरती रहती हैं वे सब प्राण शक्ति के प्रमाण हैं। भोजन, पानी और हवा से भी ज्यादा जीने के लिए प्राणशक्ति की जरूरत है। योगानुभवियों के अनुसार प्राण मन से, मन इच्छा शक्ति से, इच्छा शक्ति आत्मा से और आत्मा क्रमशः सर्वोच्च चेतना से सम्बन्धित है, प्राण का ' यह पुस्तक, सन् १६६४ 'तुलसी अध्यात्मक नीडम् जैन विद्या भारती लाडनूं' से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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