________________
388/योग-मुद्रा-ध्यान सम्बन्धी साहित्य
किस केन्द्र का कौन सा ग्रन्थि स्थान है। इस प्रसंग को सामान्य कोष्ठक से समझाया है। ३. चैतन्यकेन्द्र स्थान और नाम - इस विषय को व्यक्ति के चित्र द्वारा स्पष्ट किया है। ४. चैतन्य-केन्द्र जागृत करने की विधि ५. चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा विधि ६. विवेक केन्द्र और वासना केन्द्र के स्थान ७. चैतन्य केन्द्र को विशुद्ध करने की प्रक्रिया
निष्कर्षतः चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा विधि का प्रयोग पुनः नये आयाम के रूप में प्रस्तुत हुआ है, परन्तु यह प्रक्रिया अर्वाचीन नहीं हैं। भारत के ऋषि-महर्षि प्राचीन काल से चैतन्य जागरण की साधना करते आये हैं। गणाधिपति तुलसी ने जनसाधारण की दृष्टि से इस प्रक्रिया को सरल और विधिवत् बनाने का प्रयास किया है। उनका यह प्रयास काफी स्तुत्य रहा है। चैतन्य स्वरूप की सम्यक् चर्चा का इसमें प्रत्यक्ष दर्शन होता है। इस कृति का आलेखन सूक्ष्म गहराईयों के साथ किया गया है। प्रेक्षाध्यान : शरीर प्रेक्षा
यह पुस्तक' आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा आलेखित शरीरप्रेक्षाविधि से सम्बन्धित है। इसमें शरीर प्रेक्षा के अन्य बिन्दुओं पर भी प्रकाश डाला गया है लेकिन लेखक का ध्येय शरीरप्रेक्षाविधि पर आधारित है चूंकि प्रेक्षाविधि आध्यात्मिक साधना का मुख्य आधार है।
यदि हम यह सोचें कि शरीर और श्वास को समझे बिना, प्राणधारा को जाने बिना तथा शरीर के सूक्ष्म रहस्यों को ज्ञात किए बिना ही आत्मा तक पहुँच जायेंगे, तो यह अति कल्पना होगी। शरीर को समझना जरुरी है क्योंकि वह लक्ष्य तक पहुंचने के लिए माध्यम बनता है। इसलिए शरीर प्रेक्षा आवश्यक है।
हम जीवन में प्रतिक्षण अपने शरीर के साथ रहते हैं. किन्त उसके प्रमुख अवयवों एवं इन अवयवों के क्रियाकलापों के विषय में हमारी जानकारी अल्प से अल्पतर होती है। जबकि शरीर प्रेक्षा के लिए शरीर से परिचित होना जरुरी है। जैसे- एक फीजियोलोजिस्ट के लिए शरीर की संरचना और उनके फंक्शन को जानना नितांत आवश्यक होता है, वह उन्हें अनेक निष्कर्ष निकालता है वैसे एक ध्यान साधक के लिए भी शरीर की संरचना एवं उनकी क्रिया विधि को जानना आवश्यक है। लेकिन आश्चर्यजनक बात है कि आज का मानव शरीर के अतिनिकट रहता हुआ शायद यह भी नहीं जानता है कि वह श्वास पेट से ले रहा है या छाती से ? प्रस्तुत शरीर-प्रेक्षा की सारी प्रक्रिया व्यक्ति को अपने
' यह कृति 'जैन विश्व भारती - लाडनूं' से सन् १६६७ में प्रकाशित हुई है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org