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व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है? व्यक्तित्व विकास और उसके
रूपान्तरण की प्रक्रिया है ग्रन्थितंत्र का शोधन करना ।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 387
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हमारे शरीर में कुछ ऐसे स्थान हैं जहाँ चेतना दूसरे स्थानों की अपेक्षा अधिक सघन होती है। उन्हें चैतन्य केन्द्र की संज्ञा दी गई हैं। चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा के द्वारा इन स्थानों पर ध्यान को केन्द्रित किया जाता है तथा उनका एकाग्रता से अनुभव किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से ये स्थान हमारी उन अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों के स्थान हैं, जो हमारे आचरण, व्यवहार आदि का नियन्त्रण करती हैं। चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा से चैतन्य केन्द्र निर्मल बनते हैं और अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों में यथेप्सित परिवर्तन होता है।
चैतन्य प्रेक्षा क्यों करनी चाहिए ? इस सम्बन्ध में यह जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है कि वृत्तियों और वासनाओं का उद्भव मस्तिष्क से नहीं, अपितु अन्तःस्रावी ग्रन्थि - तन्त्र के द्वारा होता है। ये ग्रन्थियाँ ही चैतन्य केन्द्र के स्थान कहे गये हैं अतः इन ग्रन्थियों को संतुलित एवं संयमित रखना अत्यन्त जरुरी है।
प्रस्तुत कृति पाँच अध्यायों में गुम्फित है जिनमें चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा एवं उसकी विधि का उल्लेख किया गया है। प्रथम अध्याय में चैतन्य केन्द्रों को वैज्ञानिक आधार पर सुस्पष्ट किया है। इसमें 9. पाइनियल, २. पिच्यूटरी, ३. थाइराइड, ४. पेराथाइराइड, ५. थाइमस, ६. एड्रीनल, ७ गोनाड्स इन सात ग्रंथियों के स्थान और कार्य बताये हैं। द्वितीय अध्याय में चैतन्य केन्द्रों को आध्यात्मिक अस्तित्त्व के आधार पर सिद्ध किया है। तृतीय अध्याय में चैतन्य केन्द्र की प्रेक्षा क्यों ? इस विषय पर प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अध्याय में चैतन्य - केन्द्र - प्रेक्षा विधि का निरूपण है। पंचम अध्याय में चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा और उनकी निष्पति का उल्लेख है। इसमें ज्ञान, दर्शनादि तेरह प्रकार के केन्द्र बताये गये हैं तथा शारीरिक-मानसिक- आध्यात्मिक निष्पत्तियाँ कही गई हैं।
प्रस्तुत कृति से हमारा प्रयोजन चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा विधि है। इस अध्याय के अन्तर्गत निम्न विषयों पर चर्चा की गई हैं
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१. क्यूसोस, ग्लैण्ड और चक्र इस बिन्दू के अन्तर्गत बताया है कि हमारे शरीर में अनेक ग्रन्थियाँ हैं। योग के प्राचीन आचार्यों ने उन्हें चक्र कहा है । आज के शरीरशास्त्री उन्हें ग्लैण्डस् कहते हैं। जापान में प्रचलित बौद्ध पद्धति 'जूडो' में उन्हें क्यूसोस कहते हैं। यह एक आश्चर्यजनक बात है कि योगाआचार्यों ने चक्रों के जो स्थान और आकार माने हैं, आज के शरीरशास्त्रियों ने ग्लैण्डस् के जो स्थान अथवा आकार माने हैं और क्यूसोस के जो स्थान और आकार माने हैं वे तीनों समान हैं । २. केन्द्र के नाम किस केन्द्र का किस ग्रन्थि से संबंध और
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