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370 / प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य
निवारित न करने पर प्रायश्चित्त विधान ८. सूत्राध्ययन किए बिना एकलवास करने का निषेध और उसकी प्रायश्चित्त विधि ६. अपठित श्रुत वाले अनेक मुनियों का एक गीतार्थ के साथ रहने का विधान १० अपठित श्रुत मुनियों के एकान्तवास का विधान ११. पृथक्-पृथक् वसति में रहने का विधान और उसकी यतना-विधि १२. बहुश्रुत के त्वग्दोष होने के कारण एकाकी रहने का विधान १३. अबहुश्रुत के त्वक् - दोष होने पर यतना विधि १४. संयम भ्रष्ट साध्वी को गण से विसर्जित करने की विधि इत्यादि ।
सप्तम उद्देशक
सप्तम उद्देशक में निम्न विधि-विधानों का विवेचन किया गया है। १. जो साधु-साध्वी सांभोगिक है अर्थात् एक ही आचार्य के संरक्षण में हैं उन्हें अपने आचार्य से पूछे बिना अन्य समुदाय से आने वाली, अतिचार आदि दोषों से युक्त साध्वी को अपने संघ में नहीं लेना चाहिए। जिस साध्वी को आचार्य प्रायश्चित्त आदि से शुद्ध कर दें उसे अपने संघ में न लेने वाली साध्वियों को आचार्य द्वारा यथोचित्त दण्ड दिया जाना चाहिए । २. जो साधु-साध्वी एक गुरु की आज्ञा में है वे अन्य समुदाय के साधुओं के साथ गोचरी का व्यवहार कर सकते हैं । ३. किसी भी साधु को अपनी वैयावृत्य के लिए स्त्री को दीक्षा नहीं देनी चाहिए। इस विषय में और भी विवेचन किया गया है। ४. प्रव्रज्या के पारग (योग्य) - अपारग (अयोग्य) का परीक्षण ५ समागत निर्ग्रन्थी के गण में ने लेने के कारण एवं तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त विधान ६. आगत मुनियों की द्रव्य आदि में परीक्षा विधि ७. ज्ञात-अज्ञात के साथ बिना आलोचना के सहभोज करने पर प्रायश्चित्तविधान ८. आगत मुनियों का तीन दिनों का आतिथ्य और भिक्षाचर्या की विधि ६. संयतीवर्ग को विंसभोजिक करने की विधि १०. कलह और अधिकरण के विविध पहलू और उनकी उपशमन विधि ११. निर्ग्रन्थिनियों के पारस्परिक कलह के कारण एवं उसके उपशमन की विधि १२. श्रमण - श्रमणियों को स्वपक्ष में ही वाचना देने का विधान १३. स्वपक्ष - परपक्ष की उद्देशन - विधि और अपवाद १४. कौन - किसको कैसे वाचना दे ? १५. वाचना के समय साध्वियाँ कैसे बैठे? १६. दैवसिक अतिचार की चिन्तन विधि १७. आवश्यक ( दैवसिक प्रतिक्रमण) के बाद काल प्रत्युपेक्षणा की विधि १८. प्रादोषिक कालग्रहण कर गुरु के पास आने की विधि और गुरु को निवेदन १६. काल चतुष्क की उपघात विधि २०. स्वाध्याय की प्रस्थापना विधि २१ मृत साधु की परिष्ठापन - विधि तथा उपकरणों का समर्पण २२. प्रत्युपेक्षण न करने के दोष और प्रायश्चित्त २३. शमशान में परिष्ठापन की विधि २४. सात से कम मुनि होने पर परिष्ठापन की
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