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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/371
विधि २५. गृहस्थों द्वारा मुनि के शव का परिष्ठापन उसके दोष और प्रायश्चित्त २६. अकेले मुनि द्वारा शव के परिष्ठान की विधि २७. शव की उपधिग्रहण की विधि २८. विधवा आदि को शय्यातर बनाने का आपवादिक विधान इत्यादि।
इस प्रकार साधु-साध्वियों के स्वाध्याय के लिए उपयुक्त तथा अनुपयुक्त काल का भाष्यकार ने अति विस्तृत वर्णन किया है। साथ ही स्वाध्याय की विधि आदि अन्य आवश्यक बातों पर भी पूर्ण प्रकाश डाला गया है। परस्पर वाचना देने के क्या नियम है? इसका भी विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया है। अष्टम उद्देशक - इस उद्देशक के भाष्य में मुख्य रूप से विधि-विधानों सम्बन्धी निम्न चर्चा प्राप्त होती है - १. राजा को अनुकूल बनाने का विधान, २. ऋतुबद्धकाल, वर्षावास और वृद्धावास के योग्य शय्या-संस्तारक का विधान, ३. संस्तारक के लिए तण ग्रहण करने की विधि, ४. जिनकल्पिक और स्थविर कल्पिक के लिए तृणों का परिमाण, ५. ग्लान और अनशन किए हुए मुनि के लिए संस्तारक की विधि, ६. फलक को उपाश्रय के बाहर से लाने की विधि, ७. ऋतुबद्ध काल में संस्तारक न लेने पर प्रायश्चित्त का विधान, ८. वर्षाकाल में संस्तारक ग्रहण न करने पर प्रायश्चित्त और उसके कारण, ६. वर्षाकाल में फलक-संस्तारक ग्रहण की विधि, १०. दंड आदि उपकरणों की स्थापना विधि, ११. मार्ग में स्थविर के भटक जाने पर अन्वेषण विधि, १२. शून्यगृह में आहार करने की विधि, १३. प्रातिहारिक तथा सागारिक शय्या- संस्तारक को बाहर ले जाने की विधि और प्रायश्चित्त, १४. अननुज्ञाप्य संस्तारक के ग्रहण का विधान, १५. दत्तविचार और अदत्तविचार अवग्रहों में तृणफलक आदि लेने की विधि और निषेध, १६. वसति के स्वामी को अनुकुल करने की विधि, १७. विस्मृत उपधि की दूसरे मुनियों द्वारा निरीक्षण विधि, १८. उपधि-परिष्ठापन की विधि तथा आनयन विधि, १६. अतिरिक्त पात्र ग्रहण करने की विधि, २०. पात्र प्रतिलेखन की विधि, २१. आनीत पात्रों की वितरण विधि, २२. निर्दिष्ट को पात्र न देने पर प्रायश्चित्त विधान, २३. ग्लान आदि को पात्र देने की विधि इत्यादि नवम उद्देशक - इस उद्देशक का मुख्य विषय है शय्यातर अर्थात् सागारिक के ज्ञातिक, स्वजन, मित्र आदि आगंतुकों से सम्बन्धित आहार के ग्रहण-अग्रहण का विवेक तथा साधुओं की विविध प्रतिमाओं का विधान
सागरिक के घर के अन्दर या बाहर कोई आगन्तुक भोजन कर रहा हो और उस भोजन से सागारिक का सम्बन्ध हो, तो उस आहार में से साधु आगन्तुक के आग्रह करने पर भी कुछ न लें। इसी प्रकार सागरिक के दास-दासी आदि के आहार के विषय में भी समझना चाहिए। औषधि आदि के विषय में भी यही नियम है।
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