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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/357
कर्ता है और श्रमण-श्रमणिया व्यवहर्त्तव्य (व्यवहार करने योग्य) हैं जिस प्रकार कुम्भकार (कर्ता), चक्र, दण्ड, मृत्तिका सूत्र आदि करणों द्वारा कुम्भ (कर्म) का सम्पादन करता है इसी प्रकार व्यवहारज्ञ, व्यवहारों द्वारा व्यवहर्त्तव्यों (गण) की अतिचार शुद्धि का सम्पादन करता है। व्यवहार व्याख्या - व्यवहार की प्रमुख व्याख्याएँ दो प्रकार की हैं - १. सामान्य
और २. विशेष। सामान्य व्याख्या है- दूसरे के साथ किया जाने वाला आचरण। विशेष व्याख्या है- अभियोग की समस्त प्रक्रिया अर्थात् न्याया व्यवहार के भेद प्रभेद - व्यवहार दो प्रकार का कहा गया है- १. विधि व्यवहार
और २. अविधि व्यवहार। अविधि व्यवहार मोक्ष-विरोधी होने से इस सूत्र का विषय नहीं है, अपितु विधि व्यवहार ही इसका विषय है। व्यवहार के दो, तीन, चार और भी भेद-प्रभेद किये गये हैं। यहाँ व्यवहारसूत्र में उल्लिखित विधि-निषेध एवं विधि विधान का विवेचन करने से पूर्व पाँच व्यवहार व्यवहारी और व्यवहर्त्तव्य तीनों का संक्षेप वर्णन करना अवश्यक प्रतीत होता है। वे पाँच व्यवहार निम्न हैं१. आगम व्यवहार- केवलज्ञानियों, मनः पर्यवज्ञानियों और अवधिज्ञानियों द्वारा आचरित या प्ररूपित विधि-निषेध आगम व्यवहार है। नवपूर्वी, दशपूर्वी और चौदह पूर्वधारियों द्वारा आचरित विधि-निषेध भी आगम व्यवहार ही है। २. श्रुत व्यवहार- आठ पूर्व का पूर्ण ज्ञान और नवमें पूर्व का आंशिक ज्ञान धारण करने वाले के द्वारा आचरित या प्ररूपित विधि-निषेध श्रुतव्यवहार है। दशा, कल्प, व्यवहार आचरप्रकल्प (निशीथ) आदि छेदसूत्रों द्वारा निर्दिष्ट विधि-निषेध भी श्रुतव्यवहार है। ३. आज्ञा व्यवहार- दो गीतार्थ श्रमण एक दूसरे से अलग दूर देशों में विहार कर रहे हों और निकट भविष्य में मिलने की सम्भावना न हों। उनमें से किसी एक को कल्पिका प्रतिसेवना का प्रायश्चित्त लेना हो तो अपने अतिचार (दोष) कहकर गीतार्थ शिष्य को अन्य गीतार्थ के समीप भेजें। यदि गीतार्थ शिष्य न हो तो धारणाकुशल अगीतार्थ शिष्य को सांकेतिक भाषा में अपने अतिचार कहकर दूरस्थ गीतार्थ मुनि के पास भेजें और उस शिष्य के द्वारा कही गई आलोचना सुनकर वह गीतार्थ मुनि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, संहनन, धैर्य, बल आदि का विचार कर स्वयं वहाँ आवें और प्रायश्चित्त दें अथवा गीतार्थ शिष्य को समझाकर भेजें। यदि गीतार्थ शिष्य न हो तो आलोचना का सन्देश लाने वाले के साथ ही सांकेतिक भाषाओं में अतिचार शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का संदेश भेजे यह आज्ञा व्यवहार है।
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