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________________ 348/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य विधि, मिलकर भिक्षा के लिए जाने की विधि, अकेले भिक्षा के लिए जाने के कल्पित कारण विधि और तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त विधान, पात्र धोने की विधि, तीर्थकर आदि के समय जब सैंकड़ों गच्छ एक साथ रहते हों, तब आधाकर्मादि पिण्ड से बचना कैसे संभव होता है? इस शंका का समाधान, गच्छ के आधारभूत योग्य शिष्य की तलाश विधि, राजा की प्रार्थना आदि कारणों से रथयात्रा के मेले में जाने वाले साधुओं को उपाश्रय आदि की प्रतिलेखना किस प्रकार करनी चाहिए, भिक्षाचर्या किस प्रकार करनी चाहिए, स्त्री, नाटक आदि के दर्शन का प्रसंग उपस्थित होने पर किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, मंदिर में जाले, घोसलें आदि होने पर किस प्रकार यतना रखनी चाहिए, क्षुल्लकशिष्य भ्रष्ट न होने पाएँ तथा पार्श्वस्थ साधुओं के विवाद निपट जाएँ इत्यादि की विधि, पुरःकर्म सम्बन्धी प्रायश्चित्त विधान, पुरःकर्म विषयक अविधि विधि, रुग्ण साधु के समाचार मिलते ही उसका पता लगाने के लिए जाने की विधि, ग्लान साधु की सेवा के लिए जाने में दुख का अनुभव करने वाले के लिए प्रायश्चित्त विधान, उद्गम आदि दोषों का बहाना करने वाले के लिए प्रायश्चित्त विधान, ग्लान साधु की सेवा के बहाने से गृहस्थों के यहाँ से उत्कृष्ट पदार्थ, वस्त्र, पात्र आदि लाने वाले तथा क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त आदि दोषों का सेवन करने वाले लोभी साधु को लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त विधान, ग्लान साधु के लिए पथ्यापथ्य किस प्रकार लाना चाहिए, कहाँ से लाना चाहिए कहाँ रखना चाहिए इत्यादि विधि, ग्लान साधु के विशोषण साध्य रोग के लिए उपवास की चिकित्सा विधि, आठ प्रकार के वैद्य, इनके क्रमभंग से लगने वाले दोष और प्रायश्चित्त विधान, वैद्य के पास जाने की विधि, वैद्य के पास ग्लान साधु को ले जाना या ग्लान साधु के पास वैद्य को लाने की विधि, वैद्य के पास कैसा साधु जाएँ, कितने साधु जाएँ, उनके वस्त्र आदि कैसे हों, जाते समय शकुन कैसे हों इत्यादि विधि, वैद्य के आने के लिए श्रावकों को संकेत करने की विधि, वैद्य के पास जाकर रुग्ण साधु के स्वास्थ्य के समाचार कहने का क्रम, ग्लान साधु के लिए वैद्य का उपाश्रय में आना और उपाश्रय में आये हुए वैद्य के साथ व्यवहार करने की विधि, वैद्य के उपाश्रय में आने पर आचार्य आदि के उठने वैद्य को आसन देने और रोगी को दिखाने की विधि, अविधि से उठने आदि में दोष और उनका प्रायश्चित्त विधान, बाहर से वैद्य को बुलाने एवं उसके खानपान की व्यवस्था करने सम्बन्धी विधि, रोगी साधु और वैद्य की सेवा करने के कारण रोगी तथा उनकी सेवा करने वाले को अपवाद सेवन के लिए प्रायश्चित्त विधान, ग्लान साधु की उपेक्षा करने वाले साधुओं को सेवा करने की शिक्षा नहीं देने वाले आचार्य के लिए प्रायश्चित्त विधान, निर्दयता से रुग्ण साधू को उपाश्रय गली आदि स्थानों में छोड़कर चले जाने वाले आचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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