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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 347 की विधि, जिनकल्प ग्रहण करने वाले आचार्य के द्वारा कल्प ग्रहण करते समय गच्छपालन के लिए नवीन आचार्य की स्थापना विधि, गच्छ और नये आचार्य के लिए सूचनाएँ, गच्छ, संघ आदि से क्षमायाचना करने की विधि, गच्छवासीयों स्थविरकल्पिकों की मासकल्प विषयक विधि, विहार का समय, मर्यादा एवं विहार करने के लिए गच्छ के निवास और निर्वाहयोग्य क्षेत्र की जांच करने की विधि, क्षेत्र की प्रतिलेखना के लिए क्षेत्रप्रत्युपेक्षकों को भेजने के पहले उसके लिए योग्य सम्मति और सलाह लेने के लिए सम्पूर्ण गच्छ को बुलाने की विधि, गच्छ के रहने योग्य क्षेत्र प्रतिलेखना के लिए जाने की विधि, क्षेत्र में परीक्षा करने की विधि, क्षेत्र की प्रतिलेखना के लिए जाने वाले क्षेत्र प्रत्युपेक्षकों द्वारा विहार मार्ग में स्थण्डिल भूमि, पानी, विश्रामस्थान, भिक्षा, वसति, चोर आदि के उपद्रव आदि की जांच करने की विधि, प्रतिलेखना करने योग्य क्षेत्र में प्रवेश करने की विधि, भिक्षाचर्या द्वारा उस क्षेत्र के लोगों की मनोवृत्ति की परीक्षा विधि, गच्छवासी यथालंदिकों के लिए क्षेत्र की परीक्षा विधि, क्षेत्रप्रत्युपेक्षकों द्वारा अचार्यादि के समय क्षेत्र के गुण-दोष निवेदन करने तथा जाने योग्य क्षेत्र का निर्णय करने की विधि, विहार करने के पूर्व जिसकी वसति में रहे हों उसे पूछने की विधि, अविधि से पूछने पर लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त विधान, विहार करने के पूर्व वसति के स्वामी को विधिपूर्वक उपदेश, विहार करते समय शुभ दिवस और शुभ शकुन देखने के कारण एवं उसकी विधि, विहार के समय आचार्य, बालसाधु आदि के सामान को किसे किस प्रकार उठाना चाहिए उसकी विधि, अननुज्ञात क्षेत्र में निवास करने से लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त विधान, प्रतिलिखित क्षेत्र में प्रवेश और शुभाशुभ शकुनदर्शन परीक्षण, आचार्य द्वारा वसति में प्रवेश करने की विधि, वसति में प्रवेश करने के बाद झोली - पात्र लिये हुए अमुक साधुओं को साथ निकलने की विधि, झोली पात्र साथ रखने के कारण, स्थापना कुलों में जाने की विधि, एक-दो दिन छोड़कर स्थापना कुलों में नहीं जाने से लगने वाले दोष, स्थापना कुलों में से विधिपूर्वक उचित द्रव्यों का ग्रहण, जिस क्षेत्र में एक ही गच्छ ठहरा हुआ हो उस क्षेत्र की दृष्टि से स्थपना कुलों में से भिक्षा ग्रहण करने की सामाचारी, जिस क्षेत्र में दो तीन गच्छ एक वसति में अथवा भिन्न-भिन्न वसतियों में ठहरे हुए हों, उस क्षेत्र की दृष्टि से भिक्षा लेने की समाचारी, स्थविर कल्पिकों की विशेष सामाचारी का विधान, प्राभातिक प्रतिलेखना के समय से सम्बन्धित विविध आदेश एवं विधि, प्रतिलेखना के दोष और प्रायश्चित्त विधान, गच्छवासी आदि को उपाश्रय से बाहर कब, कैसे और कितनी बार निकलना चाहिए?, गृहस्थादि के लिए तैयार किये गए घर, वसति आदि में रहने और न रहने सम्बन्धी विधि और प्रायश्चित्त विधान, एषणापूर्वक पिण्ड आदि ग्रहण करने की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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