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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/343 इसमें प्रतिपादित विधि-विधान आवास से सम्बद्ध है। द्वितीय उद्देशक- इस उद्देशक में पच्चीस सूत्र हैं- उनमें उपाश्रय शय्यातर पिंड एवं वस्त्र ग्रहण सम्बन्धी निम्नलिखित विधान कहे गये हैं - १. धान्ययुक्त उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध। २. सुरायुक्त मकान में रहने का विधि-निषेध व प्रायश्चित्त। ३. जलयुक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध व प्रायश्चित्त। ४. अग्नि या दीपक युक्त उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध एवं प्रायश्चित्त। ५. खाद्य पदार्थ युक्त मकान में रहने के विधि-निषेध और प्रायश्चित्त ६. धर्मशाला आदि में ठहरने के विधि-निषेध ७. अनेक स्वामियों वाले मकान की आज्ञा लेने के विधि-निषेध। ८. संसृष्ट-असंसृष्ट शय्यातर पिंड को ग्रहण करने के सम्बन्ध में विधि-निषेध। ६. शय्यातर के घर आये या भेजे गये आहार के ग्रहण की विधि। १०. शय्यातर के अंशयुक्त आहार ग्रहण करने की विधि और निषेधा ११. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के लिए कल्पनीय वस्त्र की विधि १२. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के लिए कल्पनीय रजोहरण की विधि तृतीय उद्देशक - इस उद्देशक में इकतीस सूत्र हैं उनमें मुख्य रूप से वस्त्रग्रहण, शय्या-संस्तारक ग्रहण, मार्ग मे निवास मर्यादा, अवग्रह परिमाण आदि से सम्बन्धित विधि-निषेध और विधि-विधान कहे गये हैं वे निम्न हैं :१. साधु-साध्वी द्वारा वस्त्र ग्रहण करने के विधि-निषेध। २. साधु-साध्वी को अवग्रहानन्तक और अवग्रहपट्टक धारण करने के विधि-निषेध। ३. साध्वी को अपने द्वारा वस्त्र ग्रहण करने का निषेध। ४. दीक्षा के समय ग्रहण करने योग्य उपधि का विधान। ५. यथारात्निक के लिए वस्त्र ग्रहण का विधान। ६. यथारात्निक के लिए शय्या-संस्तारक ग्रहण का विधान। ७. यथारांत्निक के लिए कृतिकर्म करने का विधान। ६. गृहस्थ के घर में मर्यादित भाषण का विधान। ६. गृहस्थ के घर में मर्यादित धर्मकथा का विधान। १०. गृहस्थ के शय्या-संस्तारक लौटाने का विधान। ११. शय्यातर का शय्या-संस्तारक व्यवस्थित करके लौटाने का विधान। १२. खोये हुए शय्या-संस्तारक के अन्वेषण का विधान। १३. स्वामी-रहित घर की पूर्वाज्ञा एवं पुनः आज्ञा का विधान। १४. पूर्वाज्ञा से मार्ग आदि में ठहरने का विधान। १५. सेना के समीपवर्ती क्षेत्र में गोचरी जाने का विधान एवं रात रहने का प्रायश्चित्ता चतुर्थ उद्देशक - इस उद्देशक में सैंतीस सूत्र हैं। इनमें भिन्न-भिन्न विषयों से सम्बन्धित विधि-विधान एवं प्रायश्चित्त स्थान बताये गये हैं। उनमें से कुछेक निम्न हैं - १. अनुद्घातिक, पारांचिक अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त के स्थान २. वाचना देने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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