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338 / प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य
लिए प्रायश्चित्त का विधान कहा है । पन्द्रहवें उद्देशक में श्रमण - श्रमणियों को सचित्त आम खाने का निषेध किया है। श्रमण श्रमणियों की दृष्टि से तालप्रलम्ब के ग्रहण की विधि पर भी प्रकाश डाला गया है। सोलहवें उद्देशक में श्रमण को देहविभूषा और अति उज्जवल उपधि धारण का निषेध किया है। उन्हें ऐसे स्थान पर रहना चाहिए जहाँ ब्रह्मचर्य की विराधना न हो । साधु को घृणित कुल में से आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए यह भी बताया गया है। सत्रहवें अध्ययन में गीत, हास्य, वाद्य, नृत्य, अभिनय आदि का स्वरूप बताकर श्रमण के लिए उनका आचरण करना योग्य नहीं माना गया है।
अठारहवें उद्देशक में नौका सम्बन्धी दोषों पर चिन्तन किया गया है। नौका पर आरूढ होना, नौका खरीदना, नौका में पानी भरना या खाली करना, नौका को खेना, नाव से रस्सी बांधना, आदि के प्रायश्चित्त का वर्णन है । उन्नीसवें उद्देशक में स्वाध्याय और अध्यापन के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। इसमें अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने से लगने वाले दोष, अयोग्य को स्वाध्याय कराने से लगने वाले दोष और योग्य व्यक्ति को न पढ़ाने से लगने वाले दोषों पर प्रकाश डाला गया है। बीसवें उद्देशक में मासिक आदि परिहार स्थान, प्रतिसेवन, आलोचना, प्रायश्चित्त आदि पर चिन्तन किया गया है। अन्त में चूर्णिकार ने अपना नाम निर्देश किया है और चूर्णि का नाम 'विशेषचूर्णि' लिखा है।' निष्कर्षतः यह चूर्णि अपने आप में विशिष्ट है। इसमें आचार के नियमोपनियम एवं आचारविधि में लगने वाले दोष और तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त विधान का सविस्तृत व्याख्यान हुआ है। साथ ही भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक, दार्शनिक, प्राचीन सामग्री का इसमें अनूठा संग्रह है। अनेक ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं का सुन्दर संकलन है । निशीथचूर्णिदुर्गपदव्याख्या
जैन परम्परा में श्री चन्द्रसूरि नाम के दो आचार्य हुए हैं। एक मलधारी हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे और दूसरे चन्द्रकुल के श्री शीलभद्रसूरि और धनेश्वरसूरि गुरु- युगल के शिष्य थे। उन्होंने निशीथचूर्णि के बीसवें अध्ययन पर 'निशीथचूर्णि - दुर्गपदव्याख्या' नामक टीका लिखी है। चूर्णि के कठिन स्थलों को सरल व सुगम बनाने के लिए इसकी रचना की गई है, जैसा कि व्याख्याकार ने स्वयं स्वीकार किया है। परन्तु यह वृत्ति महिनों के प्रकार, दिन आदि के सम्बन्ध में विवेचन करने से नीरस हो गई है।
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निशीथसूत्र-मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति ब्यावर, भूमिका के आधार पर
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