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________________ दस' राज्याभिषेक की राजधानियों में राज्योत्सव होते समय महीने में दो-तीन बार प्रवेश करना अथवा निकलना । जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 331 दसवाँ उद्देशक यह उद्देशक भी गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त से सम्बन्धित है। इसमें निर्देश है कि जो साधु आचार्य को कठोर एवं कर्कश वचन कहता है, आचार्य की अवज्ञा करता है, अनन्तकाय मिश्रित आहार करता है, आधाकर्मिक ( साधु के निमित्त बनाया हुआ ) आहार करता है, लाभालाभ का निमित्त बताता है, किसी निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी या दीक्षार्थी गृहस्थ- गृहस्थिनी को बहकाता या अपहरण करता है, सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के प्रति निःशंक होकर आहार पानी करता है, रात को अथवा शाम को डकार आने पर सावधानी पूर्वक नहीं थुंकता है, वर्षाऋतु के प्रथम मास में ग्रामानुग्राम विचरण करता है, पर्युषण के काल के बिना ही पर्युषण करता है, पर्युषण (संवत्सरी) के दिन गोलोम मात्र भी बाल रखता है, पर्युषण के दिन आहार करता है, चातुर्मास प्रारम्भ होने के बाद और चातुर्मास पूर्ण होने के पहले वस्त्र की याचना करता है वह गुरु चातुर्मास प्रायश्चित्त का भागी होता है। ग्यारहवाँ उद्देशक यह उद्देशक भी गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त के योग्य क्रियाओं का प्रतिपादन करता है। वे क्रियाएँ निम्नलिखित हैं- लौह पात्र बनाना, लौह पात्र रखना, इसी प्रकार अन्य धातुओं के पात्र उपयोग में लाना, दंत, श्रृंग, वस्त्र, चर्म, रत्न शंख आदि के पात्र काम में लाना, (साधु को मिट्टी, अलाबु एवं काष्ठ के पात्र ही उपयोग में लेने का विधान है), दो कोस ( अर्धयोजन ) से आगे पात्र की याचना करने जाना, धर्म का अवर्णवाद करना, अधर्म की प्रशंसा करना, स्वयं को भयभीत करना या अन्य को भयभीत करना, स्वयं संयम धर्म से विमुख होना एवं दूसरों को उससे विमुख करना, रात्रिभोजन करना, बासी आहारादि का उपभोग करना, अयोग्य को दीक्षा देना, अयोग्य साधु-साध्वी की सेवा करना, बालमरण की प्रशंसा करना । बालमरण १७ प्रकार के कहे गये हैं। १. पर्वत से गिरकर मरना, २. रेत में प्रवेश कर मरना, ३. खड्डे में गिरकर मरना, ४ वृक्ष से गिरकर मरना, ५ . कीचड़ में फँसकर मरना, ६. पानी में प्रवेश कर मरना, ७. पानी में कूदकर मरना, ८. अग्नि में प्रवेश कर मरना, ६. अग्नि में कूदकर मरना, १०. विष का भक्षण कर मरना, ११. शस्त्र से आत्महत्या करना, १२. इन्द्रियों के वश - , दस राज्य ये हैं हस्तिनापुर और राजगृह । २ पर्युषण (भाद्रपद शुक्ला) की तिथि पंचमी वर्षाऋतु प्रारम्भ होने के पचास दिन बाद एवं समाप्त होने के ७० दिन पहले आती है। देखिए, समवायांग सू. ७० Jain Education International - चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, कंपिल्ल, कौशम्बी, मिथिला, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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