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________________ 278/समाधिमरण सम्बन्धी साहित्य अठारहवाँ भावना द्वार - इस द्वार में आराधक को बारह भावनाओं का चिन्तन करने का उपदेश दिया गया है। उन्नीसवाँ कवच द्वार - इस द्वार में वेदना वश चंचल चित्त वाले आराधक के लिए गुरु द्वारा स्थिरीकरण का उपदेश दिया गया है। बीसवाँ नमस्कार द्वार - इसमें आराधक के द्वारा पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार किये जाने का एवं पंचपरमेष्ठी ध्यान का वर्णन है साथ ही नमस्कार का माहात्म्य भी बताया गया है। इक्कीसवाँ शुभध्यान द्वार - इस द्वार में अनशनव्रती को धर्मध्यान और शुक्लध्यान के बारे में उपदेश दिया गया है। बावीसवाँ निदान द्वार - इस द्वार में आराधक के द्वारा निदान करने का निषेध किया गया है। तेईसवाँ अतिचार द्वार - प्रस्तुत द्वार में अनशनव्रत का सम्यक् परिपालन न करने से लगने वाले अतिचारों का वर्णन किया गया है। चौबीसवाँ फल द्वार - इस अन्तिम द्वार में आराधना का फल बताया गया है। आराधनापताका यह प्रकीर्णक वीरभद्राचार्य द्वारा प्राकृत भाषा में रचित है। इसमें ६८६ गाथायें हैं। यह ग्रन्थ समाधिमरण स्वीकार करने की विधि एवं तत्सम्बन्धी अनेक विषयों का सांगोपांग विवरण प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत कृति में मुख्य विषय का प्रतिपादन करने के पूर्व पीठिका दी गई है। इसमें पहले मरण के भेद-प्रभेदों का वर्णन हुआ है। समाधिमरण के सविचार और अविचार दो भेदों में से सविचार भक्तपरिज्ञामरण का विस्तृत विवेचन किया गया है। प्रस्तुत कृति के विषय को १. परिकर्मविधि, २. गणसंक्रमण, ३. ममत्व-उच्छेद और, ४. समाधिलाभ इन चार द्वारों में वर्गीकृत किया गया हैं इसके साथ ही इन चार द्वारों के क्रमशः ग्यारह, दस, दस और आठ प्रतिद्वार बतलाये हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रारम्भ में भगवान महावीर को वन्दन करके गौतमादि पूर्वाचार्यों द्वारा अनुभूत और कथित आराधना के स्वरूप को कहने का संकल्प किया गया है। इसके पश्चात् पीठिका के रूप में १. आराधना के चार उपायों का निरूपण, २. आराधना और विराधना के परिणाम, ३. आराधना के उपाय के भेद के सम्बन्ध में मतान्तर की चर्चा, ४. आराधना एवं विराधना के स्वरूप का ' सिरिवीरभद्दायरियविरइया 'आराहणापडाया', पइण्णयसुत्ताई, भा.२, पृ. ८५-१६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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