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________________ 276/समाधिमरण सम्बन्धी साहित्य प्राप्त करने के लिए क्रमशः उन आराधना विधि को कहने की प्रतिज्ञा की गई हैं। अन्त में ग्रन्थ प्रशस्ति छह गाथाओं के द्वारा की गई है। उसमें ग्रन्थकार ने अपनी गुरूपरम्परा का परिचय देते हुए जिननंदी, सर्वगुप्त और मित्रनन्दी इन तीनों का आर्य शब्द के साथ उल्लेख किया है तथा इसमें जो कुछ आगम के विरुद्ध लिखा गया हो; उसको ज्ञानीजन सुधारने की कृपा करें ऐसी प्रार्थना की गई है। टीकाएँ - इस ग्रन्थ पर कई टीकाएँ रचित हैं। एक टीका है, जिसे कुछ विद्वान वसुनन्दि की रचना मानते हैं। इसके अतिरिक्त इस पर चन्द्रनन्दी के प्रशिष्य बलदेव के शिष्य अपराजित की 'विजयोदया' नाम की एक टीका है। आशाधर की टीका का नाम 'दर्पण' है। इसे 'मूलाराधनादर्पण' भी कहते हैं। अमितगति की टीका का नाम 'मरणकरण्डिका' है। इन टीकाओं के अतिरिक्त इस पर एक अज्ञातकर्तृक पंजिका भी है। आराधनासार अथवा पर्यन्तराधना आराधनासार नामक यह कृति प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसमें कुल २३६ गाथाएँ हैं। इस कृति के रचनाकार एवं इसका रचनाकाल अज्ञात है। यह कृति अन्तिम आराधना अर्थात् अनशनव्रत स्वीकार करने की विधि से सम्बन्धित हैं। इसमें अन्तिम आराधनाविधि से सम्बद्ध रखने वाले चौबीस द्वारों का विस्तृत विवेचन किया गया है। इस कृति के प्रारम्भ में मंगलाचरण एवं अभिधेय का कथन किया गया है। उसके पश्चात पर्यन्ताराधना के चौबीस द्वारों का नाम निर्देश किया गया है यहाँ नामनिर्देश पूर्वक चौबीस द्वारों का सामान्य विवरण निम्न हैं - पहला संलेखना द्वार - इस द्वार में संलेखना आभ्यन्तर और बाह्य दो प्रकार की कही गई हैं। कषायों को क्षीण करना आभ्यन्तर संलेखना है और शरीर को क्षीण करना बाह्य संलेखना है। शारीरिक संलेखना उत्कृष्ट-मध्यम और जघन्य तीन प्रकार की होती है। काल की दृष्टि से यह संलेखना क्रमशः बारह दिन, बारह मास और बारह पक्ष की होती है। दूसरा स्थान द्वार - इस द्वार में आराधक को गन्धर्व, नट, वेश्या आदि के स्थान पर संलेखना ग्रहण करने को वर्जित बताया गया है। 'जिनदास पार्श्वनाथ ने इसका हिन्दी में अनुवाद किया है। सदासुख का भी एक अनुवाद है। यह ग्रन्थ अपनी अन्य टीकाओं के साथ भी प्रकाशित हुआ है। २ आराहणासार/पज्जंताराहणा-पइण्णयसुत्ताई भा. २, पृ. १३६-१६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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