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________________ 274/समाधिमरण सम्बन्धी साहित्य आत्मविशोधिकुलक __ यह प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसमें २४ गाथाएँ हैं। इस कुलक का प्रतिपाद्य विषय विविध प्रकार के दृष्कृतों की निन्दा करना है। इसमें आराधक की आत्मशुद्धि का सम्यक् मार्ग प्रस्तुत किया गया है। ___ इस कुलक में बताया गया है कि समाधिमरण ग्रहण करने वाला साधक प्रथम अरिहंत, सिद्ध, गणधर आदि के सम्मुख खड़े हो करके अपने दुश्चरित्रों की समालोचना करता है। उसके बाद सूक्ष्म और स्थूल जीवों के प्रति प्रमाद एवं दर्प से जो भी अकृत्य हुये हो, जाने या अनजाने में ज्ञान संबंधी अतिचार लगे हो, जिन वचनों के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न हुई हों, सांसारिक वस्तुओं के प्रति समभाव न रहा हों, छः प्रकार के जीवनिकायों के प्रति जाने या अनजाने में प्रमाद (हिंसा) हुआ हो एवं हास-परिहास में या अज्ञान में मिथ्या भाषण किया हो उसके लिए निन्दा करता है। साथ ही लोभवश दूसरे की अदत्त वस्तु ग्रहण की हों या वस्तु छिपायी हो, परिग्रह भाव से सचित्त-अचित्त और मिश्र वस्तुओं का ग्रहण किया हो, आर्त्तध्यान से चरित्र को मलिन किया हो, आहार-भय-मैथुन संज्ञा से पराभूत हो अन्य जो भी अकत्य किया हो, उसकी तीन योग और तीन करण से निन्दा करता है। इसी प्रकार चरण, करण, शील और भिक्षु प्रतिमाओं में जो अतिचार लगे हों, अरिहंत-सिद्धादि की आशातना की हो, इसके अतिरिक्त प्रमाद-दोष से अन्य अपराध किये हों उनकी निन्दा करता हैं इसके बाद आहार और समस्त शारीरिक क्रियाओं का त्याग करता है। अन्त में आलोचना द्वारा आत्म विशुद्धि का माहात्म्य बताया गया है। आराहणा (आराधना) __इस कृति का अपरनाम भगवती आराधना और मूलाराधना भी है। इस ग्रन्थ के रचयिता पाणितलभोजी शिवार्य है। इसमें २१६६ पद्य जैन शौरसेनी में हैं। यह कृति आठ परिच्छेदों में विभक्त है। इसका समय वि.सं. की छठी शती है। यह ग्रन्थ मुख्यतया मुनिधर्म का प्रतिपादन करता है और समाधिमरण का स्वरूप समझाता है। इसमें सल्लेखना विधि एवं मृतसाधु के परिष्ठापन की विधि का विस्तृत निरूपण हुआ है।' ' यह ग्रन्थ विजयोदयाटीका एवं हिन्दीटीका सहित श्री हीरालाल खुशालचंद दोशी, फलटण (वाखरीकर) ने सन् १६६० में प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थ का सटीका अनुवाद पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ने किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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