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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/261 उन सब विधियों का ३७ अधिकारों में निरूपण किया गया है। इन सभी अधिकारों में उन-उन विधियों से सम्बन्धित जानने योग्य, ग्रहण करने योग्य और आचरण करने योग्य विषयों का समुचित रूप से उल्लेख हुआ है। प्रस्तुत कृति के सैंतीस अधिकारों की विषयवस्तु संक्षेप में इस प्रकार हैपहला अधिकार देशविरति सह सम्यक्त्व-आरोपण की नन्दी विधि से सम्बन्धित है। इस प्रथम अधिकार में देशविरति सहित सम्यक्त्व को ग्रहण करने की विधि का विवेचन है, इसके साथ ही इसमें सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए मिथ्यात्व के हेतुओं का त्रिकरण एवं त्रियोग पूर्वक वर्जन करने का निर्देश भी दिया गया है। इस सम्बन्ध में लेखक ने शास्त्रीय गाथाओं को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया है। दूसरा अधिकार देशविरति आरोपण की नन्दी विधि से सम्बद्ध है। इस दूसरे अधिकार में श्रावक के द्वारा देशविरति (व्रतादि) ग्रहण करने के निमित्त नन्दी विधि वर्णित की है। इसके साथ ही इसमें यह भी बताया गया है कि देशविरति रूप श्रावक धर्म का निर्दोष रूप से पालन करने पर देवलोक, मुनष्यलोक और मोक्ष के सुखों की प्राप्ति होती है। तीसरे अधिकार में विभिन्न विकल्पों (भंगों) के साथ श्रावक के व्रतों और अभिग्रहों के प्रत्याख्यान की विधि का वर्णन है। इस विधि में यह बताया गया है कि श्रावक व्रत तीन योग और तीन करण की अपेक्षा से किन-किन विकल्पों के साथ ग्रहण किये जा सकते हैं। चौथे अधिकार में श्रावक के लिए ग्यारह प्रतिमाओं को ग्रहण करने संबंधी विधि दर्शायी गयी है। पाँचवें अधिकार में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का सामान्य स्वरूप प्रतिपादित किया गया है। छठे अधिकार में उपधान प्रवेश की विधि वर्णित है। सातवें अधिकार में उपधानतप की समाचारी के साथ-साथ महानिशीथ सूत्र के सन्दर्भों सहित तप की महिमा का वर्णन किया है। आठवें अधिकार में मालारोपण की नन्दी विधि को बताते हुए उपधान तप करने वाले को पहनाने वाली माला के स्वरूप का वर्णन, उसके अभिमन्त्रण की विधि एवं उसको दिये जाने वाले उपदेशों या निर्देशों का उल्लेख किया गया है। __नवमाँ सामायिकव्रत नामक अधिकार है। इसमें सामायिक व्रत के ग्रहण करने की विधि का निर्देश है। दसवें अधिकार में पौषधव्रत ग्रहण करने की सामान्य विधि वर्णित है। ग्यारहवें अधिकार में सामायिक और पौषध पारने की विधि दी गई है। बारहवें अधिकार में पौषधव्रत में करने योग्य आवश्यक क्रियाओं जैसे प्रतिलेखन आदि की चर्चा की गई हैं। तेरहवाँ तप कुलक अधिकार है। इस अधिकार में तप के बत्तीस प्रकारों का और तीर्थकरों द्वारा दीक्षा, केवलज्ञान और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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