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262 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
निर्वाण के समय किये गये तपों का वर्णन है। चौदहवें अधिकार में विभिन्न प्रकार कों तपों को ग्रहण करने की विधि एवं कुछ तपों का सामान्य स्वरूप विवेचित है। पन्द्रहवाँ श्रावक प्रायश्चित्त नाम का अधिकार है। इस अधिकार के अन्तर्गत बारह व्रतों एवं पंचाचारों संबंधी प्रायश्चित्तों का संक्षेप में वर्णन किया गया है। सोलहवें अधिकार में दीक्षा विधि विवेचित है। साथ ही गुरु के द्वारा शिष्य को दिये जाने वाले उपदेशों एवं निर्देशों का विवेचन भी है। इसमें प्रव्रज्या की महत्ता बताने के लिए महाभारत के कुछ श्लोक भी अवतरित किये गये हैं।
अठारहवें अधिकार में लोच के पूर्व या पश्चात् करने योग्य आवश्यक क्रियाओं का उल्लेख किया गया है। उन्नीसवाँ एवं बीसवाँ अधिकार उपस्थापना ( बडी दीक्षा) विधि से सम्बन्धित है। इन दो अधिकारों में क्रमशः पंचमहाव्रतों की आरोपण विधि की चर्चा के साथ-साथ महाव्रतों के परिपालन के सन्दर्भ में रोहिणी दृष्टान्त का विस्तृत विवेचन किया गया है। इक्कीसवाँ अधिकार रात्रिक-दैवसिक एवं पाक्षिक प्रतिक्रमण सह साधु दिनचर्या विधि का विवेचन करता है। इस अधिकार में मुख्य रूप से इन तीनों प्रतिक्रमणों की विधि कही गई हैं। इसके साथ साधु के जागने का काल, चैत्यवंदन विधान, कुःस्वप्नों सम्बन्धी दोषों के निवारणार्थ कायोत्सर्ग विधि, स्वाध्याय - ध्यान का काल, पौरूषी आदि का कालज्ञान, आहार विधि, शयन विधि, इत्यादि का विस्तृत विवेचन है। बावीस से तैंतीस तक बारह अधिकार योगवहन विधि से सम्बन्धित हैं। इन बारह अधिकारों में क्रमशः २२. उत्क्षेप और निक्षेपपूर्वक योग नन्दी विधि २३. योग अनुष्ठान विधि २४. योगतप विधि २५. योग में करणीय खमासमण विधि २६. योगवहन की कल्प्याकल्प्य विधि २७. गणि और योगी की उपहंनन विधि २८. अस्वाध्यायकाल की ज्ञान विधि २६. कालग्रहण विधि ३०. वसति और काल प्रवेदन विधि ३१. स्वाध्याय प्रस्थापना विधि ३२. कालमण्डल प्रतिलेखन विधि की सम्यक् विवेचन की गई हैं । तेंतीसवाँ अधिकार वाचनाचार्यपदस्थापना विधि का उल्लेख करता है। चौतीसवाँ अधिकार वाचनाचार्य विद्यायन्त्र लेखनविधि से सम्बन्धित है। इन दों विधियों में मुख्यतः वर्धमानविद्या, वर्धमानयंत्र, यंत्रलेखन के प्रकार, इत्यादि को सुस्पष्ट रूप से बताया गया है। वर्धमानविद्या का जाप एवं उसका माहात्म्य भी उल्लिखित किया गया है। प्रसंगवश इस ग्रन्थ के अन्तर्गत संस्कृत में छः श्लोकों का चैत्यवन्दन, मिथ्यात्व के हेतुओं का निरूपण करने वाली आठ गाथाएँ, उपधान विधि विषयक पैंतालीस गाथाएँ, तप के बारे में पच्चीस गाथाओं का कुलक, स्वाध्याय योग्य तेरह गाथाएँ, संस्कृत के छत्तीस श्लोकों में रोहिणी की कथा, तैंतीस आगमों के, नाम आदि बातें भी आती हैं। इसके अतिरिक्त ग्रन्थकर्त्ता द्वारा विरचित निम्न कृतियों
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