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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/245 इस विधि के अन्तर्गत जिनप्रभसूरि ने यह सूचन किया है कि उपयोगविधि के कायोत्सर्ग में 'नमस्कार मन्त्र' का स्मरण करने के बाद गुरु को तीन बार 'अन्नपूर्णा' मन्त्र का स्मरण करना चाहिए। वह मन्त्र भी इसमें उल्लिखित किया गया है। वर्तमान में मन्त्रस्मरण की परम्परा दृष्टिगत नहीं होती है। इसमें उपयोग विधि से सम्बन्धित कुछ क्रिया-कलापों का भी संक्षेप में सूचन किया गया है। सोलहवाँ- आदिमअटनविधि द्वार - इस द्वार में जब नवदीक्षित साधु उपयोग युक्त विधि करने में योग्य बन जाये, तब उसे प्रथम भिक्षा ग्रहण करने के लिए कैसे और किस शुभ दिन में जाना चाहिए? इसकी विधि निरूपित की गई है। साथ ही भिक्षा की आलोचना विधि एवं भिक्षा की ग्रहण विधि भी निर्दिष्ट की गई है। सतरहवाँ- मण्डली तप विधि द्वार- श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के अनुसार नवदीक्षित मुनि को सामुदायिक मंडली में सम्मिलित करने के लिए सात प्रकार की मंडली- यथा प्रतिक्रमण, भोजन, शयन, वाचन, आदि के निमित्त सात दिन आयंबिल करवाये जाते हैं तदनन्तर सामूहिक क्रियाकलापों के लिए उसे अनुमति प्रदान की जाती है अतः इस द्वार में मण्डलीतप की विधि का वर्णन है। . अठारहवाँ- उपस्थापनाविधि द्वार - जब नूतन श्रमण को मण्डली तपोनुष्ठान के द्वारा सामूहिक मंडली में प्रविष्ट होने की अनुमति दे दी जाती है, तब वह उपस्थापना के योग्य हो जाता है इसलिए इस द्वार में उपस्थापना (पंचमहाव्रतआरोपण) करने की विधि दर्शित की गई है। इस विधि के अन्त में उपदेशपरक कुछ गाथाएं भी कही गयी हैं, जिनमें सुप्रसिद्ध 'रोहिणी' का दृष्टान्त वर्णित किया गया है। इसमें पात्र की योग्यता की अपेक्षा से उपस्थापना करने का उत्कृष्ट- मध्यम और जघन्य काल भी बताया गया है। उन्नीसवाँ- योगविधि द्वार - यहाँ ज्ञातव्य है कि उपस्थापित हो जाने के बाद साधु को सूत्रों का अध्ययन करना चाहिये और यह सूत्राध्ययन योगोद्वहन पूर्वक किया जाता है इसलिए १६ वें द्वार में योगवहन विधि का सविस्तार वर्णन किया गया है। यह योगवहन विधि का द्वार बहुत विस्तृत है। इसमें सर्वप्रथम योगवहन करने योग्य मुनि के लक्षण बताये गये हैं। इसके साथ ही योगवहन प्रारम्भ करने योग्य शुभ दिन, वार, नक्षत्र, मुहूर्तादि का निर्देश दिया गया है, योग के प्रकार एवं आगाढ़-अनागाढ़ सूत्रों के नाम का सूचन किया गया है। अस्वाध्याय के भेद निरूपित किये गये हैं। इसमें कुल ३२ प्रकार के अस्वाध्याय स्थानों की चर्चा की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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