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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 233 टीकाएँ- इस पर अभयदेवसूरि ने वि. सं. ११२४ में एक वृत्ति' लिखी है। हरिभद्रसूरि ने भी टीका लिखी है ऐसा जिनरत्नकोश (पृ. २३१) में उल्लेख है । इस पर एक अज्ञात कर्तृक टीका भी है। वीरगणि के प्रशिष्य एवं चन्द्रसूरि के शिष्य यशोदेव ने भी पहले पंचाशक पर जैन महाराष्ट्री में वि. सं. ११७२ में एक चूर्णि लिखी थी, जिसमें प्रारम्भ में तीन पद्य और अन्त में प्रशस्ति के चार पद्य हैं, शेष ग्रन्थ गद्य में है। इस चूर्णि में सम्यक्त्व के प्रकार, उसकी यतना, अभियोग और दृष्टान्त के साथ-साथ मनुष्य भव की दुर्लभता आदि अन्यान्य विषयों का निरूपण किया गया है। इस चूर्णि में सामाचारी के विषयों का अनेक बार उल्लेख हुआ है। यह मण्डनात्मक शैली में रचित होने के कारण इसमें 'तुलादण्ड न्याय' का उल्लेख भी है। इस चूर्णि की रचना में आधारभूत सामग्री के रूप में अन्त में विविध ग्रन्थों का साक्ष्य दिया गया है और पंचाशक की अभयदेवसूरिकृतवृत्ति, आवश्यकचूर्णि और वृत्ति, नवपदप्रकरण और श्रावक प्रज्ञप्ति के उपयोग किये जाने का उल्लेख किया है। ३ पंचांगुलिविधान यह रचना अज्ञातकर्तृक है। इस रचना का उल्लेख 'जिनानन्द भंडार गोपीपुरा, सूरत' की हस्तप्रत लिस्ट में हैं। हमें मूलकृति देखने को नहीं मिली है । सम्भावना यह है कि इस कृति में पंचांगुली देवी की आराधना - उपासना अथवा प्रतिष्ठादि का विधान होना चाहिए। जैन परम्परा में श्री सीमंधरस्वामी तीर्थंकर प्रभु की शासनदेवी पंचांगुली मानी गई है, यह कृति उसी की आराधना से सम्बन्धित हो सकती है। 9 यह ग्रन्थ अभयदेवसूरिकृत वृत्ति के साथ जैन धर्म प्रसारक सभा के द्वारा सन् १६१२ में प्रकाशित हुआ है। २ प्रथम पंचाशक की यह चूर्णि पाँच परिशिष्टों के साथ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था ने सन् १६५२ में प्रकाशित की है। ३ प्रथम पंचाशक का मुनि शुभंकरविजयकृत गुजराती अनुवाद 'नेमि - विज्ञान - ग्रन्थमाला' (सन् १६४६ ) से प्रकाशित हुआ है और उसका नाम 'श्रावकधर्म विधान' रखा है। आदि के चार पंचाशक एवं उतने भा. की अभयदेवसूरि की वृत्ति का सारांश पं. चन्द्रसागरगणि ने गुजराती में तैयार किया है। यह सारांश सिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति ने सन् १६४६ में प्रकाशित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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