SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 230/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य दिन कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग में परमात्मा का ध्यान या रागादि दोषों की आलोचना करना कायोत्सर्ग प्रतिमा है। ६. अब्रह्मवर्जन प्रतिमा- उपर्युक्त पाँचों प्रतिमाओं से युक्त श्रावक द्वारा अविचल चित्त होकर कामवासना का पूर्णतया त्याग कर देना अबह्मवर्जन अर्थात् ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। ७. सचित्तवर्जन- प्रतिमाअशन, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के सचित्त भोजन का त्याग करना सचित्तवर्जन प्रतिमा है। ८. आरम्भवर्जन प्रतिमा- इस प्रतिमा में श्रावक खेती आदि वे सभी कार्य जिनमें हिंसा होती है, स्वयं छोड़ देता है लेकिन नौकरों से करवाता है। ६. प्रेष्यवर्जन-प्रतिमा- इस प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक खेती आदि आरम्भजन्य कार्य नौकरों से नहीं करवाता है। वह सारी जिम्मेदारियाँ अपने पुत्र, पारिवारिकजनों आदि पर छोड़ देता है। न तो वह स्वयं हिंसादि पापकर्म करता है और न अन्य से करवाता है। मात्र परिवारजनों द्वारा पूछे जाने पर योग्य सलाह देता है। १०. उद्दिष्टवर्जन-प्रतिमा- इस प्रतिमा को वहन करने वाला श्रावक स्वयं के निमित्त से बने हुए भोजन आदि का भी त्याग कर देता है। मात्र परिवारजनों के यहाँ जाकर निर्दोष भोजन ग्रहण करता है। ११. श्रमणभूत प्रतिमा- इस प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक मुण्डित होकर साधु के समान सभी उपकरण लेकर भिक्षावृत्ति से जीवन यापन करता है इस विधि के अन्त में कहा गया है कि जो श्रावक पूर्वोक्त प्रतिमाओं का सम्यक् रूप से पालन कर लेता है, वह प्रव्रज्या के योग्य बन जाता है। ११. साधुधर्मविधि पंचाशक- यह पंचाशक साधुधर्मविधि का प्रतिपादन करता है। जो चारित्रयुक्त होता है वही साधु है। इसमें देशचारित्र और सर्वचारित्र के भेद से चारित्र दो प्रकार का कहा गया है। गृहस्थ देशचारित्र से युक्त होता है एवं साधु सर्वचारित्र से युक्त होता है। इसके साथ ही इस पंचाशक में सर्वविरति चारित्र के पाँच प्रकारों का विशद वर्णन किया गया है। १२. साधुसामाचारीविधि पंचाशक- इस बारहवें पंचाशक में हरिभद्रसूरि ने साधुसामाचारी विधि का वर्णन किया है। साधु सामाचारी का तात्पर्य है- साधुओं के द्वारा पालन करने योग्य आचार सम्बन्धी नियम। साधु सामाचारी दस प्रकार की कही गई हैं उनके नाम निम्न हैं- १.इच्छाकार २.मिथ्याकार ३.तथाकार ४.आवश्यिकी ५.निषीधिका ६.आपृच्छना ७.प्रतिपृच्छना ८.छन्दना ६.निमंत्रणा और १०.उपसम्पदा। इस पंचाशक में इन दस सामाचारियों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। १३. पिण्डविधानविधि पंचाशक - यह पंचाशक जैन मुनि की आहार विधि का विवेचन करता है। पिण्ड अर्थात् भोजन। आहर करते समय आहार की शुद्धता का ध्यान रखना पिण्डविधान है। इसमें मुनि के आहार सम्बन्धी बियालीस दोषों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy