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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/221 जिनागम से समुद्धृत करके नित्यकर्म विधि, दीक्षा विधि और प्रतिष्ठा विधि कहने की प्रतिज्ञा की गई है। प्रथम प्रकरण में नित्यकर्मविधि का विवेचन हुआ है। उसमें उपासक की देह शुद्धि का, द्वारपूजा का, पूजागृह में प्रवेश करने का, दो प्रकार के करन्यास का, भूमिशुद्धि का, मान्त्रिक स्नान का, तीन प्रकार के अंगन्यास का, पाँच प्रकार की शुद्धि का, सामान्य से जिन पूजा का, गुरु पूजा का, चतुर्मुख सिंहासन पूजा का, अरिहन्त और सिद्ध परमात्मा की मूर्ति न्यास करने का, आहानादि का, देवस्नानादि विधि का, पंचपरमेष्ठियंत्र की पूजा करने का, आरती-मंगलदीपक का, तीन प्रकार के जाप का, गृह देवता की पूजा का, बलिप्रदान आदि का विधान बताया गया हैं। दूसरे प्रकरण में दीक्षाविधि का प्रतिपादन हुआ है। इसमें गृहस्थ की मान्त्रिक दीक्षा का, सर्वतोभद्रमण्डल का और अष्टसमयादि धारणा का विधान कहा गया है। तीसरा प्रकरण आचार्याभिषेक से सम्बन्धित है। इस प्रकरण में मण्डप स्वरूप का, वेदिका स्वरूप का, आठ प्रकार के कुम्भ का, आठ प्रकार के शंख का, अनुयोग की अनुज्ञा के लिए नन्दिपाठ श्रवण का, आचार्यपदस्थापना के समय राजा के चिन्ह विशेष शिबिका आदि का वर्णन हुआ है। चौथें प्रकरण में जिनचैत्य का निर्माण करने के लिए भूमि की परीक्षा विधि का उल्लेख है। पाँचवें प्रकरण में शिलान्यास विधि कही गई है। छठा प्रकरण प्रतिष्ठा विधि से सम्बन्धित है। इसमें शिल्पी, इन्द्र एवं आचार्य के गुणों का, अधिवासना मण्डप का, स्नान मण्डप का, तोरण-पताकादि मण्डप के अलंकार आदि का वर्णन किया गया है। सातवें प्रकरण में पाद प्रतिष्ठा की विधि वर्णित है, इस प्रकरण में पाँच प्रकार की शिला के स्नानादि का वर्णन किया गया है। आठवें प्रकरण में जिनचैत्य के मुख्य द्वार की प्रतिष्ठा विधि प्रतिपादित है। नौवें प्रकरण में जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा विधि का उल्लेख हुआ है इसमें क्षेत्रशुद्धि, आत्मरक्षा, भूतबलिअभिमन्त्रण, सकलीकरण, दिग्बन्धन, बिम्बस्नपन,नन्द्यावर्त्तमण्डल आलेखन, नन्द्यावर्त्तमण्डल पूजन, सहजगुणस्थापन, अधिवासना, अंजनशलाका, जिन बिम्ब की स्थापना (प्रतिष्ठा), प्रतिष्ठादि देवता का कायोत्सर्ग, अष्टदिवसीय या त्रिदिवसीय महोत्सव, आहूत देवों का विसर्जन आदि विधि-विधान निरूपित हुए हैं। इसके साथ ही लेपादि की हुई अचल बिम्ब की प्रतिष्ठा विधि, समस्तवैयावृत्यकर देवी-देवता की प्रतिष्ठा विधि और सरस्वती-मणिभद्र-ब्रह्मशान्ति- अम्बिकादेवी की प्रतिष्ठाविधि भी कही गई है। दशवें प्रकरण में हृत्प्रतिष्ठा विधि का वर्णन है। ग्यारहवें प्रकरण में चूलिका प्रतिष्ठा विधि उल्लिखित है। बारहवें प्रकरण में कलश-ध्वजा और धर्मचक्र की प्रतिष्ठाविधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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