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________________ 220/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य नन्दी विधि इस सम्बन्ध में हमें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस कृति नाम के अनुसार इतना कह सकते हैं कि इसमें नन्दीरचना की विधि उल्लिखित होनी चाहिए।' नन्दीमंगलविधि इसके नाम के अनुसार इसमें नन्दीरचना (समवसरणरचना/नांदमांडना) की विधि का निरूपण होना चाहिए। यह दिगम्बर भंडार में सुरक्षित है। हमें उपलब्ध नहीं हुई है। नन्दीयोगविधि यह रचना प्राकृत में है। इसका काल वि.सं. १५२६ है। इसमें नन्दिपूर्वक योगवहन करने की विधि कही गई है। नन्दीव्रतोच्चारविधि यह रचना नन्दीविधान पूर्वक व्रत ग्रहण करने की विधि से सम्बन्धित है। निर्वाणकलिका __इस ग्रन्थ के कर्ता पादलिप्तसूरि है। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार हैं ये पादलिप्तसूरि आर्यरक्षित (दूसरी शती) के समकालीन एवं उनके मामा पादलिप्तसूरि से भिन्न हैं। सम्भवतः ये दशवीं-ग्यारहवीं शती के आचार्य हैं। यह कृति संस्कृत गद्य में है और इक्कीस प्रकरणों में विभक्त है। इसमें मुख्य रूप से प्रतिष्ठा विधि का विवेचन है। प्राचीन ग्रन्थों के आलोक में देखें तो प्रतिष्ठा विधि-विधान का प्राथमिक स्वरूप हरिभद्र के षोडशक, पंचाशक आदि ग्रन्थों में देखने को मिलता है। इसके अनन्तर निर्वाणकलिका में ही दृष्टिगत होता है। निर्वाणकलिका की विषयवस्तु का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है - इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण, विषयनिरूपण एवं ग्रन्थ प्रयोजन हेतु दो श्लोक दिये गये हैं उनमें वर्धमान महावीरस्वामी को नमस्कार करके और 'जिनरत्नकोश पृ. १६६ २ वही पृ. १६६ ३ वही पृ. १६६ * (क) इस कृति का संशोधन मोहनलाल भा.वानदास झवेरी ने किया है। (ख) इसका प्रकाशन शेठ नथमलजी कनहेयालालजी रांका, मुबादेवी पोस्ट के ऊपर, तीसरा माला, मुंबई ने, सन् १६२६ में किया है। or Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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